नई दिल्ली: 7 अक्टूबर 2023 को जब हमास के आतंकियों ने अचानक इजराइल पर हमला किया तो किसी को लगा नहीं था कि ये जंग इतने दिनों तक चल पाएगी। लगा था कुछ ही दिनों में इजरायस हमास का सफाया कर देगा, लेकिन आज इस जंग की आग लाल सागर होते हुए भारत समेत दुनिया के दूसरे देशों तक पहुंच रही है। हमास के समर्थक हूती विद्रोहियों ने लाल सागर में व्यापारिक जहाजों को निशाना बनाना शुरू कर दिया है। लाल सागर के बहाने हूतिए इजरायल से जुड़े देशों की इकॉनमी पर हमला कर रहे हैं। अगर ये हमले इसी तरह से जारी रहे तो वैश्विक इकॉनमी पर नकारात्मक असर दिखने लगेगा। हूतियों के इस हमले से भारत भी अछूता नहीं रह पाएगा। आज जब कि एक देश दूसरे देशों से कनेक्ट हैं, ऐसे में इस ग्लोबल संकट की चपेट में भारत भी आएगा। हूतियों ने जिस लाल सागर को अपने जंग का मैदान बना लिया है, वो वैश्विक इकॉनमी में बड़ा रोल निभाते हैं।
भारत के लिए क्यों जरूरी है लाल सागर ?
हूती आतंकी दक्षिण लाल सागर के इलाके से गुजरने वाले व्यवसायिक जहाजों को निशाना बना रहे हैं। समंदर अशांत हो गया है, इस अशांत समंदर ने दुनिया में जहाजों के सप्लाई चेन सिस्टम को बिगाड़ दिया है। भारत भी इस भूचाल से बच नहीं पाया है। भारत के आयात-निर्यात का मुख्य रास्ता स्वेज नहर है, जो लाल सागर का हिस्सा है। यूरोप से आने-जाने वाले जहाज इसी रास्ते से भारत आते-जाते हैं। इस रास्ते पर बढ़े खतरे ने शिपिंग कंपनियों की मुश्किल बढ़ा दी है।अधिकांश शिपिंग कंपनियां लाल सागर में अपने जहाज भेजने से इंकार कर रही है। इसी रास्ते से दुनिया का 15 फीसदी कारोबार होता है। हर साल यहां सले 17 हजार से अधिक जहाज गुजरते हैं। हर साल 10 अरब डॉलर से अधिक का सामान इसी रास्ते से एक्सपोर्ट-इंपोर्ट होता है। भारत एशियाई, अफ्रीकी और यूरोपीय देशों से जो सामान मंगवाता है, वो इसी रास्ते से आयात होता है । इस रास्ते से मुख्य रूप से पेट्रोलियम पदार्थ, दालें और मशीनी उपकरण , कपड़े, खाद्य प्रदार्थ का आयात-निर्यात करता है।
भारत पर क्या होगा असर ?
लाल सागर का रास्ता अगर बाधित होता है तो वैश्विक इकॉनमी के साथ-साथ भारत पर भी इसका असर होगा। शिपिंग कंपनियों को स्वेज नहर के बजाए लंबे रास्ते को चुनना होगा। जहाज पूरे अफ्रीका महाद्वीप का चक्कर लगाकर एशिया पहुंचेंगे। ये सफर लंबा होगा। जहाजों को 6482 किलोमीटर ज्यादा का सफर करना होगा, जिसमें 15 दिनों का अतिरिक्त वक्त लगेगा। ऐसे में आशंका बढ़ रही है कि कहीं अंतरराष्ट्रीय व्यापार की स्थिति कोविड लॉकडाउन के दौर जैसी न हो जाए। माल को केप ऑफ गुड से लाया जाएगा, जिससे भारत तक सामान पहुंचने में देरी होगी। माल देरी से पहुंचने में देरी होगी, जिससे अपभोक्ता आपूर्ति पर असर दिखेगा और कीमतों में तेजी आएगी।
दूसरी ओर इस लंबे रास्ते के चलते आयात-निर्यात करने वाली शिपिंग कंपनियों पर आर्थिक बोझ बढ़ेगा। माना जा रहा है कि यूरोप और अफ्रीका से आने-जाने वाले सामानों का मालभाड़ा लगभग 25 से 30 प्रतिशत बढ़ जाएगा। जिसका असर भी अंतत उपभोक्ताओं पर होगा। देश में महंगाई बढ़ जाएगी। वहीं माना जा रहा है कि इसके चलते तेल के दामों में उछाल आएगा।
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