बीजिंग: चीन की कम्युनिस्ट सरकार (Chinese Communist Party) निजी क्षेत्र (Private Sector) को पूरी तरह से अपने नियंत्रण में करना चाहती है. सरकार ने प्राइवेट सेक्टर के लिए नई गाइडलाइन जारी है, साथ ही यूनाइटेड फ्रंट की भूमिका का भी विस्तार किया गया है. यूनाइटेड फ्रंट सरकार का एक ऐसा विभाग है, जिसे कम्युनिस्ट पार्टी के प्रभाव को बढ़ाने के लिए डिजाइन किया गया है.
राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Xi Jinping) चाहते हैं कि निजी क्षेत्र उनकी पार्टी के हिसाब से काम करे, इसलिए निजी उद्यमों में पार्टी सेल स्थापित करने को कहा गया है. हालांकि, चीन काफी पहले से यह करता आ रहा है, लेकिन अब सरकार इसे ज्यादा सख्ती से अमल में लाना चाहती है.
विदेशी कंपनी भी नहीं अछूती
प्राइवेट सेक्टर में पार्टी सेल बनाने के संबंध में कानून वर्ष 2000 में बनाया गया था और 2016 तक चीन के गैर-सरकारी उद्यमों में से 68 प्रतिशत में पार्टी सेल स्थापित की जा चुकी थी. यहां तक कि विदेशी कंपनियां भी चीनी सरकार से नहीं बच सकीं. चीन में सत्तर फीसदी विदेशी कंपनियों ने 2016 तक कम्युनिस्ट पार्टी सेल गठित कर ली थी.
नहीं हुआ विरोध का असर
चीनी सरकार के इस कदम पर व्यापक विरोध हुआ था. 2017 में जर्मनी के एक ट्रेड ग्रुप ने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी सेल स्थापित करने के फैसले पर कड़ी आपत्ति जताई थी. उसने यहां तक कहा था कि विदेशी कंपनियां कम्युनिस्ट पार्टी के दबाव के चलते चीन से अपना कारोबार समेट सकती हैं. हालांकि, चीन पर इसका कोई असर नहीं हुआ और अब उसने निजी क्षेत्र को पूरी तरह से नियंत्रित करने के लिए कदम उठाना शुरू कर दिया है.
यह है जिनपिंग का तरीका
पार्टी सेल प्राइवेट सेक्टर पर अपनी पकड़ मजबूत करने का राष्ट्रपति जिनपिंग का एक तरीका है. यूनाइटेड फोरम की भूमिका में विस्तार के बाद अब ये सेल संगठित होकर उसके साथ काम करेंगे और सरकार के एजेंडे को आगे बढ़ाएंगे. चायनीज स्टेट वायर सर्विस Xinuha का कहना है कि निजी क्षेत्र में यूनाइटेड फ्रंट के कार्य को और मजबूत बनाना बेहद महत्वपूर्ण कदम है. इससे निजी अर्थव्यवस्था पर पार्टी की पकड़ मजबूत होगी.
60 फीसदी हिस्सेदारी
चीन की आर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी 60 फीसदी है. प्राइवेट सेक्टर 80 प्रतिशत नौकरियों का सृजन करता है और जिनपिंग सरकार की कारगुजारियों के चलते Huawei और टेनसेंट जैसी कंपनियों पर लगे बैन के कारण पहले से ही घाटे का सामना कर रहा है. अब कम्युनिस्ट पार्टी सरकारी और निजी के बीच की रेखा को पूरी तरह से मिटाने पर उतारू हो गई है. जाहिर है निजी कंपनियों के लिए आने वाले दिन काफी मुश्किल भरे होने वाले हैं.
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