प्रशासनिक संवाददाता ॥ भोपाल
चुनावी साल में मध्यप्रदेश सरकार को एकदम से याद आई पुलिस कमिश्रर प्रणाली को लागू करने की कवायद के पीछे प्रदेश के आला पुलिस अधिकारियों (आईपीएस) का वह भरोसा है, जो उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को दिलाया है, इसी भरोसे के बाद मुख्यमंत्री चौहान भोपाल और इंदौर पुलिस कमिश्रर सिस्टम को लागू कराने के लिए पूरी ताकत से जुटे हैं। इस मामले में मुख्यमंत्री ने मुख्य सचिव बीपी सिंह सहित अनेक अपर मुख्य सचिव और मुख्यमंत्री सचिवालय में पदस्थ आईएएस अधिकारियों की असहमति को भी दरकिनार कर दिया है।
इस पूरे मामले से जुड़े उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार प्रदेश के कुछ शीर्ष और अक्सर सुर्खियों में रहने वाले आईपीएस अधिकारियों ने मुख्यमंत्री को भरोसा दिलाया है कि यदि सरकार पुलिस कमिश्रर प्रणाली लागू करके आईपीएस अधिकारियों को मजिस्ट्रियल पॉवर देती है तो प्रदेश में चौथी बार भाजपा सरकार बनाने में काफी मदद मिलेगी। इन पुलिस अफसरों ने मुख्यमंत्री से कहा कि कभी न कभी तो इस सिस्टम पर विचार करना ही पड़ेगा, इसलिए यह समय इस सिस्टम को लागू करने के लिए उपयुक्त है। सरकार के खिलाफ लगातार बढ़ती एंटी इनकमबेंसी और आए दिन हो रहे धरना-प्रदर्शन और आंदोलन को रोकने में यह सिस्टम काफी कारगर होगा। पुलिस के पास मजिस्ट्रियल पॉवर होने की स्थिति में विरोध-प्रदर्शनों पर काफी हद तक लगाम कसी जा सकेगी। अपराध, खासकर महिला अपराधों को कम से कम बढ़े शहरों में नियंत्रित करने का भरोसा भी पुलिस अफसरों ने मुख्यमंत्री को दिलाया है। बताया जाता हैकि पुलिस अधिकारी इन तर्कों के आधार पर मुख्यमंत्री को सहमत करने में सफल हो गए। पुलिस अफसर सरकार के खुफिया तंत्र के फीडबैक के आधार पर मुख्यमंत्री को यह समझाने में सफल रहे कि सरकार विरोधी आंदोलनों को यदि रोक दिया जाए तो एंटी इनकमबेंसी को कंट्रोल किया जा सकता है। इसके लिए पुलिस अधिकारियों ने पुलिस कमिश्रर प्रणाली के जरिए मजिस्ट्रियल पॉवर मांगे हैं ताकि उन्हें कार्रवाई करने के लिए कलेक्टरों का मुंह न ताकना पड़े।
इस बार आईपीएसपर दांव
मप्र में तीन बार से लगातार भाजपा सरकार में मुख्यमंत्री के कुछ नजदीकी आईएएस अधिकारियों की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जाती है। सोशल सेक्टर के लिए जबर्दस्त योजनाएं बनाकर इन आईएएस अफसरों ने लगातार तीन बार भाजपा सरकार का रास्ता बनाया था, लेकिन प्रदेश में चौथी बार सरकार बनाने के लिए मुख्यमंत्री ने इस बार आईएएस अधिकारियों ने ज्यादा आईपीएस पर दांव लगाया है। पुलिस कमिश्रर सिस्टम की तेज होती कवायद इसी का हिस्सा मानी जा रही है। आगामी चुनाव में कानून-व्यवस्था चूंकि सबसे बड़ा मुद्दा रहेगा, लिहाजा मुख्यमंत्री एक्सपर्ट के तौर पर इसे आईपीएस अधिकारियों के हवाले ही करना चाह रहे हैं।
इसलिए खुलकर सामने नहीं आ रहे आईएएस
पुलिस कमिश्रर प्रणाली को लागू करने की मुख्यमंत्री चौहान की जिद को देखते हुए आईएएस अफसर खुलकर इसके विरोध में सामने नहीं आ रहे। मप्र आईएएस एसोसिएशन इसका विरोध पर्दे के पीछे रहकर कर रही है। अब तक एसोसिएशन ने सार्वजनिक रूप से इस सिस्टम पर कोईप्रतिक्रिया नहीं दी है जबकि अंदर ही अंदर सभी आईएएस इसका विरोध कर रहे हैं। इस मामले में एसोसिएशन ने राज्य प्रशासनिक सेवा संघ को अनाधिकृत रूप से आगे किया है।
आईएएस अफसरों के तर्क दरकिनार
बताया जा रहा है कि मुख्यमंत्री ने जब भोपाल और इंदौर जैसे शहरों में पुलिस कमिश्रर प्रणाली लागू करने की बात कही थी, तभी मुख्य सचिव बीपी सिंह, अपर मुख्य सचिव गृह केके सिंह, अपर मुख्य सचिव पंचायत एवं ग्रामीण विकास इकबाल सिंह बैंस, मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव अशोक बर्णवाल, एसके मिश्रा, विवेक अग्रवाल सहित कईअफसरों ने मुख्यमंत्री से चर्चा कर इस पर असहमति जताई थी। कुछ अफसरों ने इसे भविष्य के लिए आत्मघाती कदम भी बताया था लेकिन मुख्यमंत्री इस बार अपने इन खास अफसरों पर भी पूरी तरह भरोसा नहीं कर रहे। बताया जाता है कि चौथी बार सत्ता में वापसी के लिए मुख्यमंत्री को इस बार आईएएस से ज्यादा आईपीएस पर भरोसा है।
केवल चुनिंदा अफसरों को होगा फायदा
ये जो कहा जाता है कि लॉ एण्ड ऑडर्र को नियंत्रित करने के लिए कलेक्टर की परमीशन लेनी पड़ती है, यही गलत है। ऐसी स्थिति में पुलिस के पास कार्यवाही के लिए पर्याप्त अधिकार होते हैं। यह तो एक बहाना मात्र है। यह बात सही है कि धरना-प्रदर्शन और आंदोलनों से एंटी इनकमबेंसी का माहौल बनता है, यह तर्क ठीक नहीं है कि पुलिस को ज्यादा अधिकार देंगे तो ऐसा नहीं होगा। वास्तविकता यह है कि पुलिस को ज्यादा अधिकार मिलने से लोगों को ज्यादा तकलीफ होगी। कोई भी शरीफ आदमी थाने नहीं जाना चाहता। पुलिस कमिश्रर प्रणाली लोगों का ध्यान बांटने का एक तरीका है। न तो इससे अपराधों पर नियंत्रिण होगा न ही कोई सरकार के खिलाफ एंटी इनकमबेंसी कम होगी। हां, इससे कुछ चुनिंदा आईपीएस अफसरों को जरूर फायदा होगा।
केएस शर्मा, पूर्व मुख्यसचिव, मप्र
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