इससे पहले की गजनगर हो जाए, गाजियाबाद का इतिहास जान लीजिए

मंगलवार को गाजियाबाद नगर निगम की एक बैठक हुई, बैठक में वैसे तो कई एजेंडे थे. लेकिन एक खास एजेंडा गाजियाबाद के नाम बदलने से जुड़ा हुआ था. बीजेपी पार्षदों की तरफ से नाम बदलने का प्रस्ताव पास किया गया और 95 पार्षदों ने नाम बदलने पर मुहर लगा दी. यानी कि नाम बदले जाने के पहले पड़ाव को पार कर लिया गया. मेयर सुनीता दयाल ने कहा कि गाजियाबाद का नाम गजनगर, गजप्रस्थ, गजपुर या हरनंदी नगर होगा इसका फैसला उत्तर प्रदेश सरकार पर छोड़ दिया गया है. इन सबके बीच हम बताएंगे दिल्ली से सटे गाजियाबाद का अपना इतिहास क्या है. 

गाजी उद दीन था गाजियाबाद का संस्थापक

गाजियाबाद का इतिहास समझने के लिए हमें इतिहास में चलना होगा. 18वीं सदी में मुगल शासन एक तरह से अंतिम सांसे गिन रहा था. मुगल बादशाह अब नाम के बादशाह रह गए थे. बड़े बड़े फैसले भी उनके सिपहसालार, जागीरदार लिया करते थे. उनमें से एक नाम था गाजी-उद दीन का. मुगल बादशाह मुहम्मद शाह के जागीरदार गाजी उद दीन के बारे में कहा जाता है कि वो दूरदर्शी था. वो इस बात को समझता था कि कुछ ऐसा कर जाना है ताकि वो इस्लामी इतिहास में एक बड़े नाम के तौर पर दर्ज हो जाए. उस कड़ी में उसने हिंडन नदी के किनारे 1740 में एक कस्बा बसाया और उसके नाम पर ही गाजियाबाद का नाम पहले गाजी-उद-दीन नगर पड़ा. 

अंग्रेजों ने बदला नाम

कोलकाता से पेशावर जाने वाली ग्रैंड ट्रंक रोड भी इस कस्बे से गुजरती थी और धीरे धीरे इस कस्बे ने शहर का शक्ल लेना शुरू कर दिया.  1857 की स्वतंत्रता की पहली लड़ाई में इस शहर का अपना योगदान रहा. 1857 की लड़ाई में जब अंग्रेज पूरी तरह जीत हासिल कर लिया तो उन्होंने इंफ्रास्ट्रक्टर के फील्ड में भी काम करना शुरू किया. 1864 में जब इस शहर से रेल लाइन गुजरी तो अंग्रेजों ने गाजी-उद-दीन नगर का नाम छोटा कर गाजियाबाद कर दिया. अंग्रेजी शासन काल में यह मेरठ जिले का हिस्सा था. हालांकि आजादी मिलने के बाद गाजियाबाद को मेरठ जिले से अलग किया गया और यह एक स्वतंत्र जिले के रूप में अस्तित्व में आया. 


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