Congress Soft Hindutva: वैसे तो इस सवाल का संबंध सियासत से है. लेकिन गणित का जिक्र करना जरूरी है. जब हम गणित के सवाल को सही तरीके से सॉल्व करने में नाकाम होते हैं तो हिट एंड ट्रायल मेथड अपनाते हैं. इस तरह से नतीजे पर पहुंचने की संभावना नजर आती है. लेकिन यह जरूरी नहीं कि नतीजा मिल ही जाए. अब इस संदर्भ को पेश करने के पीछे की वजह कांग्रेस पार्टी है. 2014 के आम चुनाव में हार के बाद कांग्रेस ने अपनी नीति में बदलाव किया और सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर चलने का फैसला किया. फैसले को जमीन पर उतारने के लिए राहुल गांधी, मंदिरों में जाकर मत्था टेकने लगे. अपने परिवार का इतिहास बताने लगे. इस तरह की कवायद से यह संदेश देने की कोशिश करने लगे कि बीजेपी तो झूठ की मशीन है. वो कांग्रेस को बेवजह बदनाम करती है. लेकिन मुश्किल तब उठ खड़ी होती है जब अपने ही सवाल उठाने लगें. जब यहां बात अपने की होती है तो कांग्रेस के एक चेहरा प्रमोद कृष्णम हैं. उन्होंने आलाकमान की रणनीति को आड़े हाथों लिया. कुछ लोगों को प्रमोद कृष्णम के ये सवाल भड़ास निकालने जैसे लग सकते हैं. लेकिन सवाल यह है कि क्या कांग्रेस का सॉफ्ट हिंदुत्व सिर्फ दिखावे के लिए है.
प्रमोद कृष्णम ने क्या कहा था
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में प्रचार के विषय पर प्रमोद कृष्णम से एक सवाल पूछा गया था. सवाल यह था कि उनका नाम स्टार प्रचारकों की लिस्ट में क्यों शामिल नहीं है. इसके जवाब में उन्होंने कहा था कि ऐसा लगता है कि कांग्रेस के ही कुछ नेता है जिन्हें राम के नाम से नफरत है, जिन्हें हिंदू शब्द से नफरत है, वे हिंदू धार्मिक गुरुओं को अपमानित करने का काम करते हैं.कुछ लोग नहीं चाहते कि पार्टी में कोई हिंदू धर्मगुरु हो.ऐसा संभव है कि पार्टी को हिंदुओं के समर्थन की आवश्यकता भी ना हो. किसी हिंदू धर्मगुरु को स्टार प्रचारक के बनाने के मकसद उन्हें नजर नहीं आ रहा हो. वो इससे अधिक और क्या कह सकते हैं.राम से नफरत करने वाले हिंदू नहीं हो सकते, राम मंदिर के रोकने के जो प्रयास हुए उसे दुनिया जानती है, राम से नफरत कौन करता है. राम के प्रति किसी आस्था है, पार्टी के अगर वो सदस्य हैं तो उसका अर्थ यह नहीं कि हम सच को सच और झूठ को झूठ ना बोले. प्रमोद कृष्णम के भड़ास के संदर्भ में ए के एंटनी की रिपोर्ट को समझना भी जरूरी है.
क्या थी ए के एंटनी रिपोर्ट
2014 के चुनाव में करारी हार के बाद सोनिया गांधी ने ए के एंटनी की अगुवाई में एक कमेटी बनाई थी. कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि बहुसंख्यक आबादी की नाराजगी का जिक्र किया था. कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि बहुसंख्यक आबादी को ऐसा लगने लगा था कि पार्टी ने अल्पसंख्यकों के मुद्दे को ज्यादा महत्व देती है. यह पार्टी की हार में प्रमुख कारणों में से एक था. हमें अब ठोस तौर पर रणनीति में बदलाव करना होगा ताकि जनता में यह संदेश जाए कि हमारे लिए बहुसंख्यक समाज मायने रखता है, हमें जनता को बताना होगा कि हिंदुत्व का मतलब समावेशी है. यानी हिंदू विचार तोड़ने में नहीं बल्कि जोड़ने में भरोसा करता है. इस तरह की रिपोर्ट के बाद कांग्रेस के नजरिए में परिवर्तन भी आया. राहुल गांधी मंदिरों के चक्कर लगाने लगे. चाहे सोमनाथ मंदिर हो या उज्जैन में महाकाल, चाहे वाराणसी में काशी विश्वनाथ या केदारनाथ धाम दर्शन.राहुल गांधी अपने भाषणों में कहते हैं कि उनके लिए हिंदुत्व वोट पाने का औजार नहीं है. वो तन-मन से हिंदू हैं.वो बीजेपी की तरह नफरती राजनीति नहीं करते इस तरह की कवायद से उन्होंने यह बताया कि कांग्रेस पार्टी बहुसंख्यक विरोधी नहीं है.
कांग्रेस का पाखंड से नाता
यह बात अलग है कि बीजेपी ने उनकी कवायद को पाखंड बताया. बीजेपी के नेता अक्सर निशाना साधते हैं कि जनेऊ धारण कर लेने की वजह से कोई हिंदू नहीं हो जाता. राम मंदिर के मुद्दे पर कांग्रेस की राजनीति को देश ने देखा है. जिस मुद्दे को आजादी के बाद ही सुलझ जाना चाहिए था उसे लटकाए रखा गया. जब बीजेपी ने इस मुद्दे को देश की अस्मिता के साथ जोड़ा तो कांग्रेस के नेताओं को सांप्रदायिकता नजर आने लगी. अब जब कांग्रेस सत्ता से बाहर है तो छद्म प्रयासों के जरिए रामनामी चोला पहन कर जनता के बीच जा रही है. लेकिन जनता समझ रही है कि कांग्रेस ने जिस राम नामी चोले को ओढ़ रखा है उसमें सिर्फ और सिर्फ पाखंड है.
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