Khalid Mashal Mossad: खालिद मशाल मतलब आतंक का दूसरा नाम. वो शख्स जिसने सुसाइड बॉम्बिंग को जिहाद का पर्याय बना दिया. 90 के दशक में यरूशलम की सड़कों पर खूनी खेल खेलने वाला खालिद मशाल. हमास के पॉलिटिकल ब्यूरो का पूर्व चीफ. मानवता का ऐसा अपराधी केरल की रैली में भाषण दे, ये बर्दाश्त से बाहर है. अगर गिरिराज सिंह गरज रहे हैं. भाजपा की फौज अगर जमात-ए-इस्लामी पर पिल पड़ी है तो इसका जिम्मेदार यही इस्लामी संगठन है. जिस आतंकी को इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद ने निपटाने का प्लान बनाया था वो भारत में हमास का गान कैसे कर सकता है? आइए जानते हैं खालिद मशाल (Khalid Mashal) को खल्लास करने का प्लान कब और क्यों बना.
क्यों खालिद की जान लेना चाहता था इजरायल?
बता दें कि आज से 26 साल पहले 25 सितंबर को खालिद मशाल को मारने की कोशिश की गई थी. ये तारीख यरूशलम के येहुदा बाजार में हुए धमाके के ठीक दो महीने के बाद की थी. इस धमाके में 16 लोग मारे गए और 160 के करीब घायल हुए थे. इसके बाद इजरायल ने खालिद मशाल को मौत के घाट उतारने के फैसला किया था जो उस वक्त पड़ोसी देश जॉर्डन के अम्मान शहर में रहता था. लेकिन खालिद मशाल की किस्मत तेज निकली. नौबत ये आ गई थी कि पहले मौत के दरवाजे तक उसे मोसाद ने ही पहुंचाया लेकिन फिर उसकी दवा भी इजरायल को ही बतानी पड़ी.
खालिद को मौत की नींद सुलाने का फुलपूफ प्लान
मोसाद का प्लान था कि उसके दो एजेंट खालिद मशाल पर जहर का स्प्रे करेंगे और ऐसा दिखाएंगे कि सोडा कैन खोलते वक्त ये गलती से हुआ. जिससे किसी को शक ना हो कि खालिद मशाल की हत्या की गई है. जैसे ही खालिद मशाल अपनी कार से निकला, एजेंट जहर का स्प्रे करने के लिए तैयार था लेकिन तभी खालिद मशाल की बेटी ने उसे वापस कार की तरफ बुला लिया. इसके बाद खालिद मशाल वापस कार की तरफ मुड़ गया. एजेंट भी जानता था कि मारने का दूसरा मौका नहीं मिलेगा तो उसने मशाल के पास जाकर उसके ऊपर जहर छिड़क दिया.
जॉर्डन में फंस गए मोसाद के एजेंट
जिस घटना को सोडा कैन खोलते वक्त हुई गलती दिखाना था, उसकी पोल खुल चुकी थी. खालिद मशाल को पता चल चुका था कि उस पर हमला हुआ है. इसके बाद वह तुरंत हॉस्पिटल चला गया. लेकिन इधर मौके से भाग रहे मोसाद के एजेंट को जॉर्डन की पुलिस ने पकड़ लिया. वहीं अन्य एजेंट जल्दी से भागकर इजरायली दूतावास में चले गए.
किंग हुसैन की धमकी से डरा इजरायल
गौरतलब है कि खालिद मशाल पर हमला करने के लिए एजेंट्स ने पोटेंट फेंटाइल डेरीवेटिव का इस्तेमाल किया था जो इतना खतरनाक होता है कि स्किन को टच होते ही कुछ घंटों में जान ले लेता है. हमले के बाद खालिद मशाल अस्पताल तो तुरंत पहुंच गया लेकिन उसकी हालत लगातार बिगड़ रही थी. जब ये खबर के जॉर्डन के किंग हुसैन को मिली थी तो वह आगबबूला हो गए. किंग हुसैन को ऐसा लगा कि जैसे इजरायल उन्हें कमजोर समझता है. वह उनके देश में कुछ भी कर सकता है. फिर भड़के किंग हुसैन ने धमकी दी कि अगर खालिद मशाल को कुछ हुआ तो इजरायली एजेंट भी मार दिए जाएंगे.
इजरायल ने ही बचाई खालिद की जान
पर इजरायल ना तो अपने एजेंट्स की मौत चाहता था और ना ही वह किंग हुसैन के साथ अपने रिश्ते बिगाड़ना चाहता था. मौके की नजाकत को देखते हुए इजरायल ने खुद ही खालिद मशाल की जान बचाने के लिए डॉक्टरों को जहर का एंटीडोट दिया. इसके बाद खालिद मशाल ठीक हो गया. खालिद मशाल को मारने का मोसाद का प्लान तो फुलप्रूफ था लेकिन किस्मत खालिद मशाल के साथ थी. वह मौत के मुंह से वापस आ गया. हैरानी की बात है कि जो इजरायल, खालिद मशाल को खत्म करना चाहता था उसी ने बाद में दवा देकर उसकी जान बचाई.
फिर कैसे बचे मोसाद के एजेंट?
इजरायलियों के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती थी कि जॉर्डन में फंसे वह अपने एजेंट्स को कैसे बचाए. तब उस वक्त यूरोपियन यूनियन में इजरायल के राजदूत रहे एफ्रेम हालेवी को किंग हुसैन के पास बातचीत के लिए भेजा गया. उनके संबंध किंग हुसैन से अच्छे थे. किंग हुसैन से मुलाकात से पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री के साथ हालेवी की मीटिंग हुई. जिसमें लंबे-चौड़े डिस्कशन के बाद भी कोई हल नहीं निकला. तब हालेवी ने सुझाव दिया कि इजरायल को हमास के नेता शेख अहमद यासीन को छोड़ देना चाहिए. जॉर्डन से अपने एजेंट छुड़ाने पर तभी बात बन सकती है. शुरुआत में तो प्रधानमंत्री राजी नहीं हुए लेकिन आखिरकार मानना ही पड़ा क्योंकि और कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था.
इसके बाद हालेवी जॉर्डन जाकर किंग हुसैन से मिले और उन्हें मनाने के लिए बताया कि इजरायल ने शेख यासीन को तुरंत छोड़ने का फैसला किया है. इसको सुनकर किंग हुसैन का गुस्सा थोड़ा शांत हुआ. इसके बाद हालेवी ने किंग हुसैन का मूड देखकर उनसे इजरायली एजेंट को छोड़ने पर बात की. हालेवी ने कहा कि आप चाहें तो उन्हें रॉयल मर्सी दे सकते हैं. ये सुनकर किंग हुसैन पहले तो चुप रहे. फिर पूछा ये रॉयल मर्सी क्या होती है? तो हालेवी ने जवाब दिया कि अगर मैं किंग होता तो इसके बारे में जरूर पता होता. बातचीत के बाद किंग हुसैन राजी हो गए और उन्होंने कहा कि दूतावास जाइए और एजेंट्स को ले लीजिए.
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