देहरादून: उत्तराखंड बीजेपी में पिछले तीन दिनों से चल रही सियासी उठापठक के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत (Trivendra Singh Rawat) ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. त्रिवेंद्र सिंह रावत के इस्तीफा के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए लॉबिंग शुरू हो गई है. रावत के करीबी और प्रदेश के उच्च शिक्षा और सहकारिता मंत्री और धन सिंह रावत (Dhan Singh Rawat) मुख्यमंत्री पद की दौड़ में सबसे आगे चल रहे हैं. उनके अलावा, लोक सभा सांसद अजय भट्ट (Ajay Bhatt), राज्य सभा सांसद अनिल बलूनी (Anil Baluni), प्रदेश के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज (Satpal Maharaj), केंद्रीय मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक (Ramesh Pokhriyal) भी मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में शामिल हैं.
विधानमंडल दल की बैठक आज
दिल्ली में बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व से मुलाकात कर मंगलवार को देहरादून लौटने के बाद रावत शाम सवा चार बजे राजभवन पहुंचे और उन्होंने राज्यपाल बेबी रानी मौर्य से मिलकर उन्हें अपना इस्तीफा सौंप दिया. राज्यपाल ने रावत का इस्तीफा स्वीकार करते हुए उन्हें राज्य के नए मुख्यमंत्री का चयन होने तक उन्हें पद की जिम्मेदारियां संभालने को कहा.आज (बुधवार) सुबह 10 बजे राज्य पार्टी मुख्यालय पर विधानमंडल दल की बैठक बुलाई गई है जिसमें सभी विधायकों की मौजूदगी में नए नेता का चयन किया जाएगा. बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह केंद्रीय पर्यवेक्षक के रूप में बैठक में मौजूद रहेंगे.
इस्तीफे पर क्या बोले रावत
इस्तीफा देने के बाद, मंगलवार को रावत ने कहा, ‘पार्टी ने सामूहिक रूप से यह निर्णय लिया है कि अब किसी और को यह मौका देना चाहिए. मेरे चार वर्ष का कार्यकाल पूरा होने में केवल नौ दिन कम रह गए हैं.’ यह पूछे जाने पर कि उनके इस्तीफे के पीछे क्या वजह रही, रावत ने कहा, ‘यह पार्टी का सामूहिक निर्णय होता है, इसका अच्छा जवाब पाने के लिए आपको दिल्ली जाना पड़ेगा.’ रावत ने अपने उत्तराधिकारी को शुभकामनांए भी दीं और कहा, ‘अब जिनको भी कल दायित्व दिया जाएगा, वह उसका निर्वहन करेंगे. मेरी उनके लिए बहुत शुभकामनांए हैं.’ उन्होंने कहा कि वह लंबे समय से राजनीति में काम कर रहे हैं और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक के रूप में काम करने से लेकर उन्होंने उत्तराखंड का मुख्यमंत्री पद संभालने से पहले पार्टी के संगठन मंत्री के रूप में भी काम किया.
लगातार उठती रही असंतोष की आवाज
बता दें, 18 मार्च 2017 को शपथ लेने के बाद से मंत्रिमंडल विस्तार सहित कुछ बातों को लेकर भाजपा (BJP) विधायकों में असंतोष की बातें गाहे बगाहे उठती रही हैं लेकिन प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों ने शनिवार शाम तब जोर पकड़ लिया जब रमन सिंह और पार्टी मामलों के उत्तराखंड प्रभारी दुष्यंत कुमार सिंह अचानक देहरादून पहुंचे और कोर ग्रुप की बैठक ली. राज्य पार्टी कोर ग्रुप की यह बैठक पहले से प्रस्तावित नहीं थी और यह ऐसे समय बुलाई गई जब प्रदेश की नई बनी ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में राज्य विधान सभा का महत्वपूर्ण बजट सत्र चल रहा था.
इस बैठक में हुआ फैसला
बैठक की सूचना मिलने पर मुख्यमंत्री रावत को तुरंत गैरसैंण से वापस देहरादून आना पड़ा. आनन—फानन में बजट पारित करा कर सत्र भी अनिश्चितकाल के लिए समाप्त कर दिया गया और भाजपा विधायकों को भी तत्काल गैरसैंण से देहरादून बुला लिया गया. दो घंटे से भी ज्यादा समय तक चली कोर ग्रुप की बैठक में प्रदेश के ज्यादातर सांसद और प्रदेश संगठन से जुड़े अहम नेता मौजूद रहे. सोमवार को भी मुख्यमंत्री रावत के गैरसैंण और देहरादून में कई कार्यक्रम प्रस्तावित थे लेकिन हाईकमान के बुलावे पर उन्हें दिल्ली जाना पड़ा जहां से वह मंगलवार को लौटे और अपना इस्तीफा सौंप दिया.
झारखंड की गलती को दोहराने से बची बीजेपी?
उत्तराखंड में मुख्यमंत्री के पद से त्रिवेन्द्र सिंह रावत को हटाने का भाजपा का फैसला पार्टी के प्रादेशिक क्षत्रपों की मुख्यमंत्री की पसंद को नजरअंदाज करने की अब तक की प्रक्रियाओं के विपरीत है. पार्टी के इस फैसले के पीछे प्रमुख वजह यह मानी जा रही है कि यदि रावत अपने पद पर बने रहते तो भाजपा को राज्य विधान सभा के चुनाव में बहुत भारी पड़ सकता था. ठीक वैसा ही जैसा झारखंड में रघुबर दास को मुख्यमंत्री बनाए रखने से 2020 के विधान सभा चुनाव में हुआ. उत्तराखंड में अगले साल के शुरुआती महीनों में विधान सभा चुनाव होने हैं. रावत के खिलाफ राज्य के भाजपा विधायकों के एक वर्ग की शिकायतें लगातार बढ़ रही थीं. इनमें कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने वाले विधायक भी थे. आम जन मानस में रावत की छवि को लेकर भी इन विधायकों ने केंद्रीय नेतृत्व के समक्ष चिंता जताई थी.
जातीय समीकरण साधने की होगी कोशिश
सूत्रों के मुताबिक इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय नेतृत्व ने रावत की जगह किसी अन्य चेहरे के नेतृत्व में आगामी विधान सभा चुनाव में जाने का फैसला किया. माना जा रहा है कि जो भी पार्टी का चेहरा होगा वह केंद्रीय तृत्व की पसंद का होगा. पार्टी यदि राजपूत बिरादरी से आने वाले निवर्तमान मुख्यमंत्री की जगह किसी राजपूत को ही मुख्यमंत्री बनाने का फैसला करती है तो इनमें मंत्री धन सिंह रावत और सतपाल महाराज के नाम प्रमुख हैं. इस पद के लिए भाजपा के सांसदों अनिल बलूनी और अजय भट्ट के नाम भी प्रमुखता से सामने आए हैं. दोनों ब्राह्मण हैं. राज्य में राजपूत मतदाताओं की तादाद सर्वाधिक है.
हो सकता है एक उपमुख्यमंत्री
सूत्रों का कहना है कि गढ़वाल और कुमाऊं के बीच क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखने के लिए पार्टी किसी को उपमुख्यमंत्री के पद से भी नवाज सकती है. वर्ष 2014 के लोक सभा चुनाव के बाद भाजपा के सबसे प्रमुख चेहरे के रूप में प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी (Narendra Modi) के उभरने के बाद मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने वाले रावत भाजपा के पहले नेता हैं. पार्टी इससे पहले भाजपा शासित राज्यों में मुख्यमंत्री के खिलाफ विधायकों की किसी भी प्रकार की लामबंदी के प्रयासों को झटका देती रही है. इसके एवज में वह राज्य सरकार की गतिविधियों पर पैनी नजर रखती थी. हालांकि, झारखंड के अनुभवों से सीख लेते हुए भाजपा ने इस बार अपनी रणनीति बदली है.
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