बीजिंग: चीन (China) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के ‘अनाम रिश्ते’ पर एक बार फिर से बहस शुरू हो गई है. इसकी वजह है कि WHO को नोबेल शांति पुरस्कार (Nobel Peace Prize) नहीं दिए जाने पर बीजिंग की तीखी प्रतिक्रिया. चीन की कम्युनिस्ट सरकार के मुखपत्र ‘ग्लोबल टाइम्स’ (Global Times) ने इसके लिए नोबल कमेटी की आलोचना की है.
अखबार के संपादक हू शिजिन (Hu Shijin) ने यहां तक कह दिया कि नोबेल शांति पुरस्कार अब बेकार हो गया है और उसे बंद कर देना चाहिए. शिजिन ने अपने ट्वीट में लिखा है, ‘नोबेल कमेटी के अंदर इतना साहस नहीं है कि वह विश्व स्वास्थ्य संगठन को पुरस्कार दे, क्योंकि यदि वह ऐसा करता तो अमेरिका उससे नाराज हो जाता’.
महज दलाली तक सीमित
उन्होंने आगे कहा कि नोबेल पुरस्कार को बहुत पहले ही रद्द कर देना चाहिए था. यह केवल पश्चिमी और अमेरिका के रसूखदारों की दलाली के अलावा कुछ नहीं करता. यह केवल बनावटी संतुलन बनाने का प्रयास करता है. हू शिजिन के लिए इस तरह की बयानबाजी नई बात नहीं है, वो चीनी सरकार के एजेंडे को इसी तरह आगे बढ़ाते हैं. हालांकि, जिस तरह से उन्होंने नोबल कमेटी पर सवाल उठाये हैं उससे इतना जरूर साफ हो गया है कि चीन और WHO के बीच अनाम रिश्ता है, जिससे दोनों लगातार इनकार करते आये हैं.
चाहत पूरी नहीं हुई तो भड़का
मालूम हो कि शुक्रवार को ओस्लो में नोबेल समिति के अध्यक्ष बेरिट रेइस एंडरसन ने नोबेल शांति पुरस्कार की घोषणा करते हुए कहा था कि वर्ष 2020 के शांति नोबेल पुरस्कार से विश्व खाद्य कार्यक्रम को सम्मानित किया जाएगा, जो वैश्विक स्तर पर भूख से लड़ने और खाद्य सुरक्षा के प्रयासों के लिए काम कर रहा है. दरअसल, चीन चाहता था कि कोरोना से लड़ाई के लिए WHO को शांति का नोबल मिले, लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ तो वह भड़क गया.
अमेरिका के निशाने पर रहे हैं दोनों
अमेरिका सहित कई देश कोरोना (CoronaVirus) महामारी को लेकर चीन और WHO के गठजोड़ को दोषी करार देते आये हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने आरोप लगाया था कि डब्ल्यूएचओ चीन केंद्रित हो गया है और उसकी लापरवाही के चलते ही कोरोना महामारी बना. इसी आधार पर ट्रंप ने WHO की फंडिंग भी रोक दी है. हालांकि, यह बात अलग है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन इन आरोपों से इनकार करता रहा है. उसका दावा है कि कोरोना को लेकर वह पूरी तरह पारदर्शी रहा है और कभी किसी का पक्ष नहीं लिया.
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