तेल अवीव: दुनिया में अपना प्रभाव और विस्तारवाद को बढ़ावा देने के लिए चीन ने दो फॉर्मूले अपना रखे हैं. पहला, वह विकासशील देश में सड़क, बिजली, पानी जैसी ढांचागत सुविधाओं में निवेश कर अपना प्रभाव बढ़ाता है. वहीं विकसित देशों में नई तकनीकों के रिसर्च में निवेश कर वहां से आधुनिक तकनीक हासिल करता है. इन तय फॉर्मूलों से उसे जहां आर्थिक फायदा होता है, वहीं तकनीक के मामले में भी उसकी बादशाहत बढ़ती है. लेकिन अब अमेरिका ने चीन के इन फॉर्मूलों पर कैंची चलाने की घोषणा की है.
बता दें कि तकनीक के मामले में इजराइल की कोई सानी नहीं है. मध्य पूर्व में बसे इस छोटे से यहूदी देश के पास आज वह सब आधुनिक तकनीकें हैं, जिनकी दुनिया के तमाम देश कामना करते हैं. इस इलाके में अरब मुस्लिमों और यहूदी इजराइल के बीच ऐतिहासिक विवाद रहा है. ऐसे में कोई भी देश किसी भी एक पक्ष का खुला समर्थन करने से बचता है. अमेरिका के साथ हुए अनुभवों को ध्यान में रखकर चीन अब इस इलाके में नपे तुले अंदाज में कदम बढा रहा है. वह अरब देशों और इजराइल की दुश्मनी में न पड़कर दोनों पक्षों को समान रूप से साधने की कोशिश कर रहा है.
दरअसल इस इलाके के अरब देशों से चीन को तेल-गैस मिलती है. जिससे उसकी फैक्ट्रियां चलती हैं. वहीं ये देश चीन में बने माल के बड़े खरीदार भी हैं. उधर इजराइल नवीनतम तकनीकों का मास्टर है. जिसके जरिए चीन को कमर्शल और सैन्य उपयोग वाली नवीनतम तकनीकें मिल सकती हैं. इसी बात को ध्यान में रखकर चीन की 42 कंपनियों ने पिछले 10 सालों में इजराइल की कंपनियों के साथ 90 बिजनेस डील की हैं.
माना जाता है कि ये सब कंपनियां चीन की कम्युनिस्ट पार्टी और उसकी सेना PLA का मुखौटा भर हैं और उन्हीं के निर्देश पर नई तकनीक हासिल करने के लिए दूसरे देशों में निवेश कर रही हैं. चीन की ZTE कंपनी ने इजराइल की रेनबो मेडिकल में भारी निवेश किया है. इसी तरह चीन की बड़ी कंपनी बाइडू ने इजराइल की 5 कंपनियों में निवेश कर रखा है. चीन की हुवावेई और हेक्साटियर कंपनी ने भी इजराइल की कई कंपनियों में निवेश कर रखा है.
चीन और इजराइल के बीच बढ़ती इस यारी ने अमेरिका के कान खड़े कर दिए हैं. पार्टी लाइन से ऊपर उठकर रिपब्लिकन और डेमोक्रेट पार्टी के सांसदों ने इस मुद्दे पर गंभीर चिंता जताई है और इजराइल से चीन के साथ अपने संबंधों का स्तर घटाने की मांग की है. अमेरिकी प्रशासन ने इजराइल को चेताया है कि तकनीक के सेक्टर में चीनी निवेश एक गंभीर खतरे का संकेत है.
अमेरिका ने कहा कि चीन का अपने देश की सीमा के बाहर किया जा रहा निवेश एक गंभीर खतरे का सबब है. इस रणनीति के जरिए चीन दुनिया के अधिकतर हिस्सों पर अपना अधिकार करने की कोशिश कर रहा है. ऐसे में इजराइल समेत अमेरिका के सभी मित्र देशों को चीन की इस रणनीति से सावधान रहकर उससे निश्चित दूरी बनानी चाहिए.
बता दें कि अमेरिका, रूस के बाद इजराइल दुनिया का सबसे आधुनिक देश है. जहां पर हर वक्त नई- नई तकनीकों पर काम चलता रहता है. यही वजह है कि आकार में बहुत छोटा होने के बावजूद यह यहूदी देश आसपास के शक्तिशाली मुस्लिम देशों से दबता नहीं है.
वर्ष 1967 में आसपास के 6 मुस्लिम देशों ने फिलीस्तीन के मुद्दे पर उस पर एक साथ हमला कर दिया था. लेकिन इजराइल ने अपने आधुनिक हथियारों की मदद से न केवल उन सब देशों की सेनाएं बुरी तरह बर्बाद कर दी बल्कि उन देशों की जमीन का बड़ा हिस्सा भी छीन लिया. यह जमीनें आज भी इजराइल के पास हैं और मुस्लिम देश इन्हें वापस लेने की हिम्मत नहीं जुटा पाए हैं. तकनीक के क्षेत्र में इजराइल की इसी महारत को देखते हुए चीन अब निवेश के जरिए उस पर डोरे डालकर अपने विस्तारवाद का सपना पूरा करना चाहता है. जिस पर अब अमेरिका की नजर पड़ गई है.
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