दिल्ली की कुतुब मीनार, ईंट से बनी दुनिया की सबसे ऊँची मीनार है। इसकी ऊँचाई 72.5 मीटर (237.86 फुट) और व्यास 14.3 मीटर है, जो ऊपर जाकर शिखर पर 2.75 मीटर (9.02 फुट) हो जाता है। इसमें 379 सीढियां हैं। अफगानिस्तान की जाम मीनार से प्रेरित एवं उससे आगे निकलने की इच्छा से, दिल्ली के पहले मुस्लिम शासक कुतुबुद्दीन ऐबक, ने कुतुब मीनार का निर्माण सन 1193 में आरम्भ करवाया, परन्तु केवल इसका आधार ही बनवा पाया। बाद में उनके दामाद और उत्तराधिकारी इल्तुतमिश ने इसमें तीन मंजिलों को बढ़ाया, और सन 1368 में फिरोजशाह तुगलक ने पाँचवीं और अन्तिम मंजिल बनवाई। इस मीनार में ऐबक से तुगलक तक के स्थापत्य एवं वास्तु शैली में बदलाव को देखा जा सकता है। मीनार को लाल पत्थर से बनाया गया है, जिस पर कुरान की आयतों की एवं फूल बेलों की महीन नक्काशी की गई है। यह मीनार पुराने दिल्ली शहर, ढिल्लिका के प्राचीन किले लालकोट के अवशेषों पर बनी है। ढिल्लिका आखिरी हिन्दू राजाओं तोमर और चौहान की राजधानी थी। माना जाता कि कुतुब मीनार का इस्तेमाल पास ही में बनी कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद की मीनार के रूप में होता था और यहां से अजान दी जाती थी। यह भी कहते हैं कि इस्लाम की दिल्ली पर विजय के प्रतीक रूप में बनी। कुछ पुरातत्व शास्त्री मानते हैं कि इसका नाम पहले तुर्क सुल्तान कुतुबुद्दीन एबक के नाम पर पडा, वहीं कुछ यह मानते हैं कि इसका नाम बगदाद के प्रसिद्ध सन्त कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर है, जो भारत में रहने आए थे। यहाँ लगे शिलालेख में लिखा है कि इसकी मरम्मत फिरोज शाह तुगलक ने (1351-88) और सिकंदर लोधी (1489-1517) ने करवाई। मेजर आर.स्मिथ ने इसका जीर्णोद्धार 1829 में करवाया था। मीनार के चारों ओर बने अहाते में भारतीय कला के कई उत्कृष्ट नमूने हैं, जिनमें से अनेक इसके निर्माण काल सन 1193 या और पहले के हैं। इनमें कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा बनाई गई भारत की पहली मस्जिद कुव्वत-उल-इस्लाम, चौथी सदी का चंद्र लोह स्तम्भ (आयरन पिलर), अलाई दरवाजा, इल्तुतमिश का मकबरा (1235 इसवी) प्रमुख हैं। लोह स्तम्भ की खासियत यह है कि 1700 साल के लंबे अर्से से यह खुले आसमान में खड़ा है। इसके ऊपर सालों से धूप, बारिश और धूल गिरती रही है, लेकिन इसके बावजूद भी इस पर जंग नहीं लगा है। कुतुब मीनार के पास ही एक और मीनार बनाने की शुरूआत की गई थी। इसे अलाई मीनार कहते हैं।
अलाउद्दीन खिलजी ने इसका निर्णाण शुरू कराया था। वे कुतुब मीनार से दुगनी ऊँची मीनार बनाना चाहते थे। इस मीनार की बुनियाद के अलावा करीब 80 फुट की ऊँचाई तक काम हो गया था, पर सन 1316 में अलाउद्दीन की मौत के बाद यह काम अधूरा रह गया।
यूनेस्को की विश्व धरोहर स्मारकों की सूची में शामिल
कुतुबमीनार का निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1193 में शुरू करवाया था। पर ऐबक केवल काम शुरू ही करवा सका था कि उसकी मृत्यु हो गई। इल्तुतमिश ने जो ऐबक के बाद दिल्ली की गद्दी पर बैठा, इसमें तीन मंजिलें जुड़वाईं। कुतुबमीनार में आग लगने के बाद उसका पुनर्निर्माण फिरोज शाह तुगलक के समय हुआ। इस प्रश्न का उत्तर देते समय प्रतियोगी परीक्षा में बैठने वाले जल्दबाजी में गड़बड़ कर जाते हैं। याद रहे कि काम शुरू ऐबक ने करवाया था और पूरा करवाया इल्तुतमिश ने, और 1386 में मीनार को दुर्घटना के बाद दुरुस्त करवाया फिरोजशाह तुगलक ने। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि कुतुबुद्दीन ऐबक के नाम पर ही इस मीनार का नाम पड़ा जबकि कुछ बताते हैं कि बगदाद के संत कुतुबद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर इस मीनार का नाम कुतुबमीनार पड़ा।
काकी बाद में भारत में आकर ही रहे। इल्तुतमिश इन्हें बहुत मानता था। 72.5 मीटर ऊँची यह मीनार यूनेस्को की विश्व धरोहर स्मारकों की सूची में भी शामिल है।
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