14 साल-नर्मदा बेहाल

विशेष संवाददाता ॥ भोपाल

मध्यप्रदेश में नर्मदा नदी का जल स्तर पिछले 14 सालों में सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है। 14 सालों में नर्मदा हाल से बेहाल हो गई है। प्रदेश सरकार के लाख दावों, करोड़ों-अरबों की योजनाओं और मां नर्मदा को बचाने के लिए चलाए गए असफल अभियानों के बावजूद कई जगह नर्मदा सिकुड़ गई है। जहां पिछले सीजन तक नदी को नाव से पार करना पड़ता था अब स्थिति यह है कि कई स्थानों नर्मदा पैदल ही पार की जा रही है। प्रमुख तटों, दूरस्थ घाटों का भी यही हाल है। मार्च के महीने में ही नर्मदा का जलस्तर 260.580 मीटर दर्ज किया है। 42 साल में यह स्थिति दूसरी बार बनी है। जल विशेषज्ञों और पर्यावरण विदों ने भी इस पर चिंता जताई है।
इस साल बारिश कम होने के कारण नर्मदा नदी में जलसंकट अभी से गहराने लगा है। हैंडपंप और कुओं का जलस्तर कम हो रहा है। नर्मदा में पानी का स्तर कम होने से जलसंकट और गहराएगा। नहर का पानी बंद होने से सहायक नदियां भी सूख गईं हैं। होशंगाबाद स्थित बांद्राभान में नर्मदा सूख गई है। इससे नर्मदा का जलस्तर तेजी से कम हो रहा है। बताया जा रहा है कि हंडिया में 1977 में केंद्रीय जल आयोग ने केंद्र शुरू किया। तब से लेकर अब तक 42 साल हो चुके हैं, लेकिन मार्च में तीसरी बार नर्मदा के जलस्तर में रिकार्ड गिरावट दर्ज की है। पिछले एक सप्ताह में 38 सेमी पानी कम हुआ है। सबसे कम जलस्तर 4 मार्च 2008 को दर्ज किया था जो 260.400 मीटर था। पिछले साल था एजोला का प्रकोप
पिछले साल 2017 मार्च के महीने में याने ठीक एक साल पहले नर्मदा पर एजोला घास का प्रकोप हुआ था । पानी की सतह पर एजोला की हरी चादर बिछ गई थी । उसकी सफाई के लिए पर्यावरण प्रेमी कार्यकर्ताओं, श्रद्धालुओं ने एजोला सफाई का अभियान चलाया था। कलेक्टर होशंगाबाद भी कार्यकर्ताओं के साथ एजोला सफाई में श्रमदान के लिए सांडिया घाट पर नर्मदा में उतरे थे। उस समय पानी की गहराई ज्यादा होने से किनारे से ज्यादा आगे नहीं जा पा रहे थे। इस साल एजोला नहीं है, उस पर नियंत्रण कर लिया गया है। लेकिन इस साल पानी ही बहुत घट गया है। ड्ड
नर्मदा संरक्षण के लिए
ए नर्मदा किनारे स्थित कारखानों पर परिष्कृत इकाइयां लगाई जाएं।
ए वहां से शौचालय स्थानांतरित किए जाएं।
ए नर्मदा किनारों की हरियाली बचाएं और उसे फैलाने में मदद करें।
ए जैविक खेती को ब?ावा दिया जाए।
ए 300 मीटर के दायरे में निर्माण न हो इसका सख्ती से पालन करवाया जाए।
ए जिन शहरों को नर्मदा का पानी दिया जा रहा है, वहां के परंपरागत जल स्त्रोतों को पुनर्जीवित किया जाए।
अवैध उत्खनन प्रतिबंध सिर्फ कागजों पर
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने वैसे तो नर्मदा जी की नदी के रेत उत्खन्न पर कागजों में प्रतिबंध लगा रखा है पर हकीकत कुछ और ही रेत माफिया और भ्रष्ट अधिकारियो की मिलीभगत से ये जारी है।

केंद्रीय मंत्री ने दिया था जल परिवहन का सुझाव
अभी होशंगाबाद के पास बांद्राभान घाट पर 16 व 17 मार्च को नदी महोत्सव आयोजित किया गया था । उसमें मुख्य अतिथि केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने नर्मदा पर जल परिवहन के मॉडल की सुनहरी कल्पना प्रस्तुत करते हुए कहा था कि जल परिवहन से ढुलाई खर्च बहुत घट जाएगा । वह आदर्श कल्पना थी, लेकिन आज की कड़वी सच्चाई कुछ और ही है।

लगातर नर्मदा नदी और सहायक नदियों में रेत का उत्खनन होना बडे पैमाने पर ट्यूबवेल खनन और नर्मदा नदी नदी पर बांध बनाना ही मुख्य रूप से नर्मदा नदी के प्रवाह को कम करने और सहायक नदी को समाप्त करने के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार है। केजी व्याास जल विशेषज्ञ
नर्मदा में रेत उत्खनन पर रोक लगानी होगी। साथ ही संरक्षण के लिए अधिक से अधिक पेड लगाने होंगे। लोगों को जागरूक करना होगा।
अरुण अग्रवाल सदस्य, नर्मदा सेवा समिति


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