अहिंसा और अपरिग्रह की साक्षात मूर्ति

चैत्र शुक्ल एकादशी के दिन पडऩे वाली महावीर जयंती भगवान महावीर को समर्पित है। महावीर जयंती को जैन समुदाय द्वारा व्यापक स्तर पर मनाया जाता है। आज देश भर में महावीर जयंती मनाई जा रही है। भगवान महावीर जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर हैं। भगवान महावीर के बचपन का नाम वर्धमान था। जैन धर्मावलम्बियों का मानना है कि वर्धमान ने कठोर तपस्या से अपनी समस्त इन्द्रियों पर विजय प्राप्त की थी। इसलिए भगवान महावीर को ‘जिनÓ अर्थात् विजेता कहा जाता है।
जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान श्री महावीर स्वामी का जन्म कुंडलपुर वैशाली के इक्ष्वाकुवंश में चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में हुआ था। इनके माता का नाम त्रिशला देवी था और पिता का नाम राजा सिद्धार्थ था।
बचपन में इनका नाम वर्धमान था लेकिन बाल्यकाल से ही वह साहसी, तेजस्वी, ज्ञान पिपासु और अत्यंत बलशाली होने के कारण वे महावीर कहलाए। भगवान महावीर ने अपने इन्द्रियों को जीत लिया जिस कारण इन्हें जीतेंद्र भी कहा जाता है। इनके शरीर का वर्ण सुवर्ण था और इनका चिह्न सिंह था। इनके यक्ष का नाम ब्रह्मशांति और यक्षिणी का नाम सिद्धायिका देवी था। जैन धर्मावलम्बियों के अनुसार भगवान महावीर के गणधरों की कुल संख्या 11 थी, जिनमें गौतम स्वामी इनके प्रथम गणधर थे। भगवान महावीर ने मार्गशीर्ष दशमी को कुंडलपुर में दीक्षा की प्राप्ति की और दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् 2 दिन बाद खीर से इन्होंने प्रथम पारण किया था। दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् 12 वर्ष 6.5 महीने तक कठोर तप करने के बाद वैशाख शुक्ला दशमी को ऋजुबालुका नदी के किनारे साल वृक्ष के नीचे भगवान महावीर को कैवल्यज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
भगवान महावीर अहिंसा और अपरिग्रह के साक्षात् मूर्ति थे। वे सभी के साथ सामान भाव रखते थे और किसी को कोई भी दु:ख देना नहीं चाहते थे। अपनी श्रद्धा से जैन धर्म को पुन: प्रतिष्ठापित करने के बाद कार्तिक अमावस्या दीपावली के दिन पावापुरी में भगवान महावीर ने निर्वाण को प्राप्त किया था।
महावीर जयंती का महत्व
भगवान महावीर ने कठोर तप से अपने जीवन पर विजय प्राप्त किया था। महावीर जयंती पर श्रद्धालु जैन मंदिरों में भगवान महावीर की मूर्ति को विशेष अभिषेक कराया जाता है। महावीर को स्नान करने के बाद उनकी मूर्ति को सिंहासन या रथ पर बैठाकर हर्सोल्लास के साथ जुलूस निकाला जाता है, इस महाजुलूस में बड़ी संख्या में जैन धर्मावलम्बी शामिल होते हैं, दरअसल, इस दिन भगवान महावीर का जन्म हुआ था, इसलिए इस दिन समाज में उनके संदेशों का प्रचार करते हैं। महावीर ने अहिंसा का संदेश दिया था। उन्होंने कहा था कि अहिंसा ही सबसे बड़ा धर्म है। खुद जीओ और दूसरों को भी जीने दो। हर प्राणी के प्रति दया का भाव रखो, दया ही अहिंसा है। भगवान महावीर अहिंसा, त्याग व समभाव की प्रतिमूर्ति थे, भगवान महावीर ने त्याग और तपस्या की शक्ति से आत्मसाक्षात्कार किया था। उनके वचनों में जीवन का सार है, करीब ढाई हजार साल पूर्व भारत एवं दुनिया के सामने जो चुनौतियां थीं, वे आज भी मौजूद हैं, बस उनका स्वरूप बदल गया है, अत्याचार, दमन, शोषण, आतंक, युद्ध, हिंसा और असत्य जैसी बुराइयां आज भी विद्यमान हैं, भगवान महावीर ने अपने वचनों में इन बुराइयों पर विजय पाने का मार्ग बताया है।
भगवान महावीर के उपदेश
ठ्ठ अहिंसा
इस लोक में जितने भी त्रस जीव (एक, दो, तीन, चार और पाँच इंद्रिय वाले जीव) आदि की हिंसा नहीं करना चाहिए। उन्हें अपने रास्ते पर जाने से नहीं रोकना चाहिए। उन सब के प्रति सामान भाव रखना चाहिए। साथ ही उनकी रक्षा करनी चाहिए। ये अहिंसा के संदेश भगवान महावीर अपने उपदेशों से हमें देते हैं।
ठ्ठ सत्य
सत्य के बारे में भगवान महावीर का कहना है कि मनुष्य को सत्य को सच्चा तत्व समझना चाहिए। सत्य के संबंध में भगवान महावीर ने कहा कि जो बुद्धिमान मनुष्य सत्य की ही आज्ञा में ही रहता है वह मृत्यु को तैरकर पार कर जाता है।
ठ्ठ अपरिग्रह
भगवान महावीर ने अपरिग्रह के बारे में कहा कि जो मनुष्य निर्जीव चीजों का संग्रह करता है वह दूसरों से ऐसा संग्रह करवाता है या दूसरों को ऐसा संग्रह करने की सहमति देता है। ऐसे व्यक्ति को दुखों से भी कभी छुटकारा नहीं मिल सकता है। भगवान महावीर ने ये संदेश अपरिग्रह के माध्यम से दुनिया को देना चाहा।
ठ्ठ ब्रह्मचर्य
महावीर स्वामी ब्रह्मचर्य के बारे में अपने बहुत ही अमूल्य उपदेश देते हैं कि ब्रह्मचर्य उत्तम तपस्या, नियम, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, संयम और विनय की जड़ है। तपस्या में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ तपस्या है। जो पुरुष स्त्रियों से संबंध नहीं रखते, वे मोक्ष मार्ग की ओर बढ़ते हैं।
ठ्ठ क्षमा
क्षमा के बारे में भगवान महावीर कहते हैं- मैं सब जीवों से क्षमा चाहता हूँ। जगत के सभी जीवों के प्रति मेरा मैत्रीभाव है। मेरा किसी से वैर नहीं है। मैं सच्चे हृदय से धर्म में स्थिर हुआ हूँ। सब जीवों से मैं सारे अपराधों की क्षमा माँगता हूँ। सब जीवों ने मेरे प्रति जो अपराध किए हैं, उन्हें मैं क्षमा करता हूँ।
ठ्ठ धर्म
धर्म सबसे उत्तम मंगल है। अहिंसा, संयम और तप ही धर्म है। भगवान महावीर कहते हैं जो धर्मात्मा है, जिसके मन में सदा धर्म रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं।
भगवान यह भी कहते हैं मैंने अपने मन में जिन-जिन पाप की वृत्तियों का संकल्प किया हो, वचन से जो-जो पाप वृत्तियाँ प्रकट की हों और शरीर से जो-जो पापवृत्तियाँ की हों, मेरी वे सभी पापवृत्तियाँ विफल हों। मेरे वे सारे पाप मिथ्या हों।


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