महाराष्ट्र के अहमदनगर में स्थित शनि शिंगणापुर धाम एक पवित्र तीर्थ स्थल है। शिंगणापुर के इस चमत्कारी शनि मंदिर में देश-विदेश के अनेक शनि भक्त आते हैं। शनिदेव की इस दुर्लभ प्रतिमा के दर्शन प्राप्त करके शनि आशीर्वाद की प्रार्थना करते हैं। मंदिर के बारे में अनेक मान्यताएं भी प्रचलित हैं। शनिवार के दिन और प्रत्येक माह में आने वाली अमावस्या को यहां पर भक्तों का तांता लगा रहता है भारत के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां आकर भक्ति भाव सहित शनिदेव की पूजा अर्चना करते हैं। शनि जयंती और शनिश्चरी अमावस्या पर विशेष प्रबंध किए जाते हैं।
आसमान ही है शनि देव की छत
शनि महाराज के इस शिंगणापुर धाम की एक खासियत यह भी है कि यहां शनि महाराज का यह स्वयं भू स्वरुप किसी छत के नीचे नहीं है। इस बारे में भी कहा जाता है कि जब उक्त व्यक्ति ने कहा कि महाराज मंदिर कैसा हो तो इस पर स्वयं शनि महाराज ने कहा कि खुले में इसकी स्थापना हो क्योंकि पूरा आसमान ही उनकी छत है। फलस्वरुप आप जाकर देख सकते हैं इस शनिधाम में किसी प्रकार का छत्र या फिर गुंबद नहीं है बल्कि खुले आसमान के नीचे संगमरमर के चबूतरे पर उनका यह स्वरुप विराजमान है। मंदिर में स्थित इस प्रतिमा की ऊंचाई लगभग पांच फीट नौ इंच चौड़ी है जबकि चौड़ाई लगभग एक फीट छह इंच।
क्या है मंदिर की विशेषता
शनि शिंगणापुर में स्थित शनि देव की काले रंग की पाषाण प्रतिमा स्वयंभू मानी जाती है। इस प्रतिमा को लेकर एक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार यह शिला एक गड़ेरिए को मिली थी। शनिदेव ने उसे आदेश दिया कि इस प्रतिमा को किसी खुले परिसर में रखा जाए व इस पर तेल द्वारा अभिषेक किया जाए। प्रभु का ऐसा आदेश पाकर उसने इस प्रतिमा को यहां स्थापित किया तब से एक चबूतरे पर शनि देवजी का पूजन एवं तेल अभिषेक करने की परंपरा चली आ रही है।
शनि करते हैं शिंगणापुर वासियों की रखवाली
शिंगणापुर गांव इस शनिधाम के कारण ते सुर्खियों में बना ही रहता है लेकिन एक और चीज है जिसके लिये पूरी दुनिया में उसनी अपनी एक अलग जगह बनाई है। यहां पूरे गांव में किसी भी घर में दफ्तर में यहां तक कि बैंक तक में ताले तो दूर दरवाजे तक नहीं हैं। इसके पीछे की मान्यता यही है कि यहां के निवासियों व उनके साजो सामान की रखवाली स्वयं भगवान शनि करते हैं। शनि के डर से ही कोई भी चोरी का साहस नहीं कर पाता। कभी कभार कोई ऐसी जुर्रत करता भी है तो उसका अंजाम बहुत बूरा होता है। कहते हैं चोरी का सामान लेकर चोर गांव की सीमा भी पार नहीं कर पाते। खून की उलटियां होने लगती हैं या फिर सामान सहित वह पकड़ा जाता है।
गांव के घरों में नहीं लगाए जाते ताले
शिंगणापुर गांव की खासियत ये है कि इस छोटे-से गांव में आज भी किसी घर में ताला या कुंडी नहीं लगाई जाती। इसके साथ ही लोगों को अपने कीमती सामान को किसी अलमारी या तिजोरी में भी नहीं रखते।
शनि शिंगणापुर मंदिर का इतिहास
कहा जाता है कि शिंगणापुर गांव में एक बार बड़े जोर की बाढ़ आयी और इसी बाढ़ में एक बड़ा ही अजीबो-गरीब पत्थर भी बहकर आया। जब बाढ़ का जोर कुछ कम हुआ तो गांव के एक व्यक्ति ने इसे पेड़ में अटका देखा। पत्थर अजीब था इसलिये कीमती जान इसे नीचे उतारने लगा जैसे ही उसने नुकीली चीज से उस पत्थर को खिंचना चाहा तो जहां से पत्थर को छुआ वहां से रक्त की धार छूट गई, यह देखकर वह व्यक्ति घबरा गया और गांव वालों को इस बारे में बताया। अब गांव वाले भी हैरान। किसी को समझ नहीं आये क्या किया जाये। ऐसे में रात हो गई लेकिन पत्थर वहां से नहीं हिला लोग अगले दिन पर बात छोड़ घर वापस चल दिये। बताया जाता है कि रात को गांव के ही एक सज्जन को स्वयं शनि महाराज ने स्वपन में दर्शन दिये और कहा कि वह पत्थर के रुप में स्वयं ही हैं उसकी स्थापना करवाओ। अगले दिन गांववालों को जब स्वपन की बात पता चली तो उसकी स्थापना की योजना बनाने लगे लेकिन पत्थर फिर भी टस से मस न हो। उस रात फिर शनि महाराज ने दर्शन दिये और बताया कि रिश्ते में मामा-भांजा ही उसे उठा सकते हैं। अगले दिन मामा-भांजा ने उन्हें उठाया तो बड़ी आसानी से उसकी स्थापना कर दी गई।
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