साईं नाम की महिमा अपरंपार है। हफ्ते के सात दिनों में से बृहस्पतिवार का दिन है खास, जिस दिन मिलती है शिर्डी वाले साई बाबा की खास कृपा, आप भी उठाएं लाभ। कहते हैं बाबा अपने जीवनकाल में भक्तों को बृहस्पतिवार और शुक्रवार को उपासना और इबादत करने का परामर्श देते थे। बाबा कहते थे हिन्दू धर्म को मानने वाले गुरुवार को पवित्र कहते हैं एवं शुक्रवार को मुस्लिम पाक दिन मानते हैं।
शिर्डी के साई बाबा का मंदिर विश्व भर में प्रसिद्ध तीर्थस्थल है। महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के कोपरगांव क्षेत्र में छोटा सा कस्बा है शिरडी। गोदावरी नदी पार करने के पश्चात मार्ग सीधा शिर्डी को जाता है। आठ मील चलने पर जब आप नीमगांव पहुंचेंगे तो वहां से शिरडी दृष्टिगोचर होने लगती है। श्री सांईनाथ ने शिर्डी में अवतीर्ण होकर उसे पावन बनाया। यहां रोजाना 50 हजार भक्त साई बाबा के दर्शनार्थ पहुंचते हैं और गुरुवार तथा रविवार को यह संख्या एक लाख पार कर जाती है। दशहरा, रामनवमी, गुरुपूर्णिमा एवं 31 दिसंबर जैसे अवसरों पर तो बाबा के दर्शनार्थियों की संख्या प्रतिदिन तीन लाख से भी ज्यादा हो जाती है। हालांकि यहां पहुंचने के लिए सीधा रेलमार्ग साईनगर शिर्डी रेलवे स्टेशन भी है। मनमाड या नासिक तक रेल से सफर के बाद लोग बसों या दूसरे साधनों से भी शिर्डी पहुंचते हैं। शिर्डी मुंबई से करीब 250 किमी और नासिक से 90 किमी दूर है। इन दोनों शहरों से शिर्डी के लिए कई टूरिस्ट कंपनियां अपनी नियमित लग्जरी बस सेवाएं चलाती हैं। श्री साई बाबा की जन्मतिथि, जन्म स्थान और माता-पिता का किसी को भी ज्ञान नहीं है। इस संबंध में बहुत छानबीन की गई। बाबा से तथा अन्य लोगों से भी इस विषय में पूछताछ की गई, परन्तु कोई संतोषप्रद उत्तर अथवा सूत्र हाथ न लग सका। वैसे साई बाबा को कबीर का अवतार भी माना जाता है। बाबा की एकमात्र प्रामाणिक जीवन कथा श्री सांई सत्चरित है जिसे श्री अन्ना साहेब दाभोलकर ने सन 1914 में लिपिबद्ध किया। ऐसा विश्वास किया जाता है कि सन 1835 में महाराष्ट्र के परभणी जिले के पाथरी गांव में साई बाबा का जन्म भुसारी परिवार में हुआ था। (सत्य साई बाबा ने बाबा का जन्म 27 सितंबर 1830 को पाथरी गांव में बताया है।
इसके पश्चात 1854 में वे शिरडी में ग्रामवासियों को एक नीम के पेड के नीचे बैठे दिखाई दिए। अनुमान है कि सन 1835 से लेकर 1846 तक पूरे 12 वर्ष तक बाबा अपने पहले गुरु रोशनशाह फकीर के घर रहे। 1846 से 1854 तक बाबा बैंकुशा के आश्रम में रहे। सन 1854 में वे पहली बार नीम के वृक्ष के तले बैठे हुए दिखाई दिए। कुछ समय बाद बाबा शिरडी छोड़कर किसी अज्ञात जगह पर चले गए और चार वर्ष बाद 1858 में लौटकर चांद पाटिल के संबंधी की शादी में बारात के साथ फिर शिरडी आए।
शिर्डी का सांई मंदिर वास्तु के कारण है प्रसिद्ध
शिर्डी के सांई बाबा के समाधी मंदिर की प्रसिद्धि मंदिर परिसर की वास्तुनुकुल भौगोलिक स्थिति और उस पर किये गए वास्तुनुकुल निर्माण के कारण ही है। आज से लगभग 150 वर्ष पूर्व जिस स्थान पर कुटिया का निर्माण किया गया था उस स्थान की भौगोलिक स्थिति पूर्णत: वास्तुनुकुल थी जो आज भी यथावत ही है, सांई बाबा की कृपा से पिछले कुछ दशकों से किए जा रहे निर्माण भी सहज भाव से वास्तुनुकुल ही हो रहे है, जबकि समाधी परिसर के अंदर किये जा रहे निर्माण को देखने से स्पष्ट हो जाता है कि यहां किया गया वास्तुनुकुल निर्माण बिना वास्तु विचारे ही हुआ है, शिर्डी के सांई मंदिर का द्वारका माई वह स्थान जहां है सांई बाबा भोजन बनाते थे, वही पर धूनी रमाते थे और उसी धूनी का प्रसाद लोगों को देते थे। धूनी की भभूत से लोगों के दुख दर्द दूर होते थे और वह स्थान जहां बाबा का समाधी मंदिर है दोनों स्थान पास-पास है, यह दोनों स्थान वर्तमान सांई मंदिर परिसर की दक्षिण दिशा में है, इस भाग की जमीन ऊंचाई लिए हुए है और परिसर के बाहर दक्षिण दिशा में सड़क है सड़क के दूसरी ओर दुकाने है जहां प्रसाद, सांई बाबा के फोटो एवं साहित्य मिलता है, परिसर की चारों दिशाओं में द्वार है परंतु परिसर का मुख्यद्वार उत्तर दिशा में है जहां से भक्त कई बड़े कमरों से गुजरते हुए समाधी मंदिर तक जाते है, जमीन का उत्तरी दिशा का यह भाग दक्षिण दिशा की तुलना में काफी निचाई लिए हुए है, इसी प्रकार परिसर के पश्चिम दिशा वाले भाग में जहां पर लेंडी गार्डन है परिसर के बाहर मनवाड जाने वाली सड़क है, सड़क के दूसरी ओर होटल व दुकाने है। पश्चिम दिशा की जमीन पूरी समतल है किंतु सड़क से मंदिर की ओर पूर्व दिशा में जमीन ढलान लिए हुए है, इस प्रकार इस परिसर की पश्चिम दिशा ऊंची एवं पूर्व दिशा नीची हो रही है।
मंगल आरती से शुरू होते हैं दर्शन
बाबा के दर्शनों का सिलसिला सुबह सवा पांच बजे उनकी मंगल आरती से शुरू होता है। इस आरती में शामिल होने के लिए भक्त भोर में चार बजे ही आकर कतारबद्ध हो जाते हैं। हॉल भर जाने पर कतार में बचे भक्त क्लोजसर्किट टीवी पर स्नान एवं मंगल आरती देख सकते हैं। करीब एक घंटे चलने वाली इस प्रक्रिया के बाद भक्त रेलिंग के सहारे बाबा की मूर्ति की ओर बढ़ते जाते हैं। यह सिलसिला रात 10 बजे शयन आरती तक चलता रहता है। भक्तगण बाबा के बाद समाधि मंदिर से सटी द्वारकामाई मस्जिद एवं चावणी के दर्शन करते हैं। मंदिर परिसर में वह शिला आज भी मौजूद है, जिस पर बैठकर साई बाबा भक्तों को आशीर्वाद दिया करते थे। बाबा की जलाई धुनी भी लगातार प्रज्वलित है।
संग्रहालय
बाबा द्वारा उपयोग की गई वस्तुओं का यहां एक संग्रहालय भी है, जहां बाबा के कपड़े, जूते, पालकी, रथ व व्हीलचेयर आदि चीजें हैं। साई बाबा के प्रति लोगों की श्रद्धा ने ही शिरडी जैसे छोटे कस्बे को पर्यटन के नक्शे पर महत्वपूर्ण स्थान दिला दिया है। साई बाबा ने अपनी जिंदगी में समाज को दो अहम संदेश दिए हैं- सबका मालिक एक और श्रद्धा और सबूरी। साई बाबा के इर्द-गिर्द के तमाम चमत्कारों से परे केवल उनके संदेशों पर ही गौर करें तो पाएंगे कि बाबा के कार्य और संदेश जनकल्याणकारी साबित हुए हैं।
कैसे पहुंचें
हालांकि यहां पहुंचने के लिए सीधा रेलमार्ग साईनगर शिर्डी रेलवे स्टेशन भी है। मनमाड या नासिक तक रेल से सफर के बाद लोग बसों या दूसरे साधनों से भी शिर्डी पहुंचते हैं। शिर्डी मुंबई से करीब 250 किमी और नासिक से 90 किमी दूर है।
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