डाकू अंगुलिमाल और महात्मा गौतम बुद्ध

बहुत पुरानी बात है मगध राज्य में एक सोनापुर नाम का गाँव था। उस गाँव के लोग शाम होते ही अपने घरों में आ जाते थे। और सुबह होने से पहले कोई कोई भी घर के बाहर कदम भी नहीं रखता था। इसका कारण डाकू अंगुलीमाल था। एक दिन गौतम बुद्ध उस गाँव में आये। गाँव वालों ने अंगुलिमाल के आतंक का पूरा किस्सा गौतम बुद्ध को सुनाया। अगले ही दिन गौतम बुद्ध जंगल की तरफ निकल गये, गाँव वालों ने उन्हें बहुत रोका पर वो नहीं माने। बुद्ध को आते देख अंगुलिमाल हाथों में तलवार लेकर खड़ा हो गया, पर बुद्ध उसकी गुफा के सामने से निकल गए उन्होंने पलटकर भी नहीं देखा। अंगुलिमाल उनके पीछे दौड़ा, पर दिव्य प्रभाव के कारण वो बुद्ध को पकड़ नहीं पा रहा था।
ठ्ठ थक हार कर उसने कहा- रुको
ठ्ठ बुद्ध रुक गए और मुस्कुराकर बोले- मैं तो कबका रुक गया पर तुम कब ये हिंसा रोकोगे। अंगुलिमाल ने कहा- सन्यासी तुम्हें मुझसे डर नहीं लगता। सारा मगध मुझसे डरता है। तुम्हारे पास जो भी माल है निकाल दो वरना, जान से हाथ धो बैठोगे। मैं इस राज्य का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति हूं।
ठ्ठ बुद्ध जरा भी नहीं घबराये और बोले- मैं ये कैसे मान लूँ कि तुम ही इस राज्य के सबसे शक्तिशाली इन्सान हो। तुम्हे ये साबित करके दिखाना होगा।
ठ्ठ अंगुलिमाल बोला बताओ- कैसे साबित करना होगा।
ठ्ठ बुद्ध ने कहा- तुम उस पेड़ से दस पत्तियां तोड़ कर लाओ।
ठ्ठ अंगुलिमाल ने कहा- बस इतनी सी बात, मैं तो पूरा पेड़ उखाड़ सकता हूँ।
ठ्ठ अंगुलिमाल ने दस पत्तियां तोड़कर ला दीं।
ठ्ठ बुद्ध ने कहा- अब इन पत्तियों को वापस पेड़ पर जाकर लगा दो।
ठ्ठ अंगुलिमाल ने हैरान होकर कहा- टूटे हुए पत्ते कहीं वापस लगते हैं क्या ?
ठ्ठ तो बुद्ध बोले- जब तुम इतनी छोटी सी चीड़ को वापस नहीं जोड़ सकते तो तुम सबसे शक्तिशाली कैसे हुए।
ठ्ठ यदि तुम किसी चीड़ को जोड़ नहीं सकते तो कम से कम उसे तोड़ो मत, यदि किसी को जीवन नहीं दे सकते तो उसे मृत्यु देने का भी तुम्हे कोई अधिकार नहीं है।
ठ्ठ ये सुनकर अंगुलीमाल को अपनी गलती का एहसास हो गया। और वह बुद्ध का शिष्य बन गया। और उसी गाँव में रहकर लोगों की सेवा करने लगा।
ठ्ठ आगे चलकर यही अंगुलिमाल बहुत बड़ा सन्यासी बना और अहिंसका के नाम से प्रसिद्ध हुआ।


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