क्यों वर्जित है मक्का मदीना में गैर मुस्लिमों का प्रवेश?

सऊदी अरब की धरती पर इस्लाम का जन्म हुआ, इसलिए मक्का और मदीना जैसे पवित्र मुस्लिम तीर्थस्थल उस देश की थाती हैं। मक्का में पवित्र काबा है, जिसकी परिक्रमा कर हर मुसलमान धन्य हो जाता है। यही वह स्थान है जहां हज यात्रा सम्पन्न होती है। इस्लामी तारीख के अनुसार 10 जिलहज को दुनिया के कोने-कोने से मुसलमान इस पवित्र स्थान पर पहुंचते हैं, जिसे ‘ईदुल अजहाÓ कहा जाता है। मक्का पहुंचने के लिए मुख्य नगर जेद्दाह है। यह नगर एक बंदरगाह भी है और अंतरराष्ट्रीय हवाई मार्ग का मुख्य केन्द्र भी। जेद्दाह से मक्का जाने वाले मार्ग पर ये निर्देश लिखे होते हैं कि यहां मुसलमानों के अतिरिक्त किसी भी और धरम का व्यक्ति प्रवेश नहीं कर सकता। अधिकांश सूचनाएं अरबी भाषा में लिखी होती हैं, जिसे अन्य देशों के लोग बहुत कम जानते हैं।
‘काफिरोंÓ का प्रवेश प्रतिबंधित
अब तक इन सूचनाओं में यह भी लिखा जाता था कि ‘काफिरोंÓ का प्रवेश प्रतिबंधित है। लेकिन इस बार ‘काफिरोंÓ शब्द के स्थान पर ‘नान मुस्लिमÓ यानी गैर-मुस्लिमों का प्रवेश वर्जित है, लिखा था। ‘काफिरोंÓ शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है ‘इनकार करनाÓ अथवा छिपाना। वास्तव में काफिर शब्द का उपयोग नास्तिक के लिए किया जाता है। दुर्भाग्य से काफिर शब्द को हिन्दुओं से जोड़ दिया, जो एकदम गलत है। ईसाई, यहूदी, पारसी और बौद्ध भी उस वर्जित क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर सकते।
प्रसिद्ध अवधारणाएं: मक्का मक्केश्वर महादेव का मंदिर था
मुसलमानों के सबसे बड़े तीर्थ मक्का के बारे में कहते हैं कि वह मक्केश्वर महादेव का मंदिर था। वहां काले पत्थर का विशाल शिवलिंग था जो खंडित अवस्था में अब भी वहां है। हज के समय संगे अस्वद (संग अर्थात पत्थर, अस्वद अर्थात अश्वेत यानी काला) कहकर मुसलमान उसे ही पूजते और चूमते हैं। इसके बारे में प्रसिद्ध इतिहासकार स्व0 पी.एन.ओक ने अपनी पुस्तक ‘वैदिक विश्व राष्ट्र का इतिहासÓ में बहुत विस्तार से लिखा है।


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