विशेष संवाददाता ॥ भोपाल
हाइकोर्ट ने हाल में राज्य सरकार को निर्देश दिए है कि किसी भी मंडी में 90 दिनों के तक अनाज समर्थन मूल्य पर नहीं बिकने दिया जाए। इसकी व्यवस्था करने के निर्देश सरकार को दिए हैं।
इसके बाद किसान संगठनों ने यह मांग उठाना शुरू कर दी है कि पिछले 15 सालों के दौरान जितना भी अनाज समर्थन मूल्य से कम बिका है। उसका भुगतान किसानों को किया जाए। हाईकोर्ट के ताजे फैसले से किसानों को अपने मूल्य का वाजिब दाम मिलने की उम्मीद बढऩे लगी है। भारतीय किसान मजदूर संघ ने दावा किया है कि यह प्रावधान पहले से ही है कि मंडियों में 90 दिनों तक समर्थन मूल्य पर नहीं बेचा जाए। इस संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवकुमार कक्काजी ने जब 22-23 साल के थे तब उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सेठी से मिलकर 1972 में मंडी अधिनियम बनवाया था। और यह मुलाकात होशंगाबाद के तत्कालीन विधायक विनय दीवान द्वारा कराई गई थी एवं 1972 के मंडी एक्ट में स्पष्ट कहा गया था कि कोई भी अनाज समर्थन मूल्य से नीचे नहीं बिकना चाहिए यदि बिकता है तो यह मंडी अधिनियम का उल्लंघन है और संबंधित पर एफआईआर दर्ज होनी चाहिए। इस विषय को लेकर राष्ट्रीय किसान मजदूर संघ के सहयोगी संगठन अन्नदाता किसान संगठन द्वारा पिटीशन दायर की थी। जिसका फैसला जबलपुर हाईकोर्ट के जस्टिस रूसिया के द्वारा 20 फरवरी को दिया गया जिसमें सरकार को निर्देशित किया गया कि 90 दिन मे सुनिश्चित किया जाए कि कोई भी अनाज समर्थन मूल्य से से नीचे नहीं बिकेगा। राष्ट्रीय किसान मजदूर संघ के अध्यक्ष शिवकुमार कक्काजी ने सरकार से मांग की है कि पिछले 15 सालों में जितने भी किसानों का माल समर्थन मूल्य से नीचे बिका है उन्हें अंतर की राशि का भुगतान तत्काल किया जाए एवं जिन लोगो ने भी मंडी अधिनियम 1972 का उल्लंघन किया है उन पर तत्काल एफआईआर दर्ज की जाए। इधर, संगठन के अध्यक्ष कक्काजी ने कहा हैकि यह फैसला आने के बाद सरकार की भावंतर योजना के परखच्चे उड़ चुके हैं एवं यह योजना पूर्णता दोषयुक्त है। यह साबित हो चुका है।
90 दिनों में करेंगे किसानों की शिकायतों का निराकरण
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य के किसानों के हक में एक महत्वपूर्ण आदेश पारित किया। इसके तहत मंडी बोर्ड के के प्रबंधक निदेशक को 90 दिन के भीतर शिकायत और मांगों पर न्यायोचित कार्रवाई के निर्देश दिए गए हैं। याचिकाकर्ता ने दलील दी कि केन्द्र शासन ने किसानों की फसलों को मंडियों में समर्थन मूल्य पर बेचे जाने की बेहतर व्यवस्था दी। इसके बावजूद मध्यप्रदेश की मंडियों में मनमानी जारी है। इसके तहत कृषि उपज मंडी अधिनियम-1972 की धारा-36 (3) के प्रावधान का खुला उल्लंखन न करते हुए किसानों और खरीददारों के बीच बिचलौए सक्रिय हैं। इस वजह से मेहनतकश किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य नहीं मिल पा रहा है।
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