रायपुर : होली का त्योहार यूं तो पूरे भारत वर्ष में धूमधाम से मनाया जाता है, पर छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में पारम्परिक होली का अंदाज कुछ जुदा है. लोग यहां होली देखने दूर-दूर से आते हैं. यहां होली में होलिका दहन के दूसरे दिन पादुका पूजन व `रंग-भंग` नामक अनोखी और निराली रस्म होती है.
देवी-देवताओं को दी जाती है विधिवत विदाई
इसमें सैकड़ों की संख्या में लोग हिस्सा लेते हैं. मान्यता है कि होलिका दहन स्थल के राख से मंडई में मां दंतेश्वरी आमंत्रित देवी-देवताओं और पुजारी व सेवादारों के साथ होली खेलती हैं. इस मौके पर फागुन मंडई के अंतिम रस्म के रूप में विभिन्न ग्रामों से मेले में पहुंचे देवी-देवताओं को विधिवत विदाई भी दी जाती है. यहां का जनसमुदाय इस पारम्परिक आयोजन का जमकर लुत्फ उठाता है. इस पारम्परिक आयोजन के बारे में मां दंतेश्वरी मंदिर के सहायक पुजारी हरेंद्र नाथ जिया ने बताया कि यहां विराजमान सती सीता की प्राचीन प्रतिमा लगभग सात सौ साल पुरानी है. एक ही शिला में बनी इस प्रतिमा को राजा पुरुषोत्तम देव ने यहां स्थापित किया था. तब से यहां फागुन मंडई के दौरान होलिका दहन और देवी-देवताओं के होली खेलने की परम्परा चली आ रही है.
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