जयपुर ॥ एजेंसी
राजस्थान विधानसभा में भूत- प्रेत होने और इसके अपशकुनी होने के अंधविश्वास के बाद अब राजस्थान के राजभवन को लेकर भी इसी तरह की चर्चा शुरू हो गई है। हालांकि इसे महज एक संयोग ही कहेंगे कि देश के बेहतरीन राजभवनों में से राजस्थान राजभवन में राज्यपाल रहते हुए पिछले 12 सालों में 4 राज्यपालों का निधन पद पर रहते हुए हो चुका है।
अंधविश्वास से जुड़ी धारणाओं से विधायक ही नहीं, बड़े-बड़े नेता भी इत्तेफाक रखते आए हैं, यह विडंबना ही है कि एक संयोग को अंधविश्वास से जोड़ लिया जाता है। राजस्थान के राजभवन के बारे में बनी धारणा के की गाहे-बगाहे चर्चा होती रहती है कि यह राजभवन राज्यपालों के लिए शुभ नहीं है।राजस्थान के राजभवन के शुभ नहीं होने की धारणा की शुरुआत 1998 से होती है। 12 साल में चार राज्यपालों का पद पर रहते हुए निधन के संयोग ने अंधविश्वास की चर्चाएं तेजी से फैली। 13 मई 1998 को राज्यपाल दरबारा सिंह का लू लगने निधन हुआ। इसके बाद 22 सितंबर 2003 को राज्यपाल रहते निर्मल चंद जैन का हार्ट अटैक से निधन हो गया।वहीं, अपने बेबाक अंदाज और स्ट्रैटफार्वर्डनेस के लिए खासे चर्चित रहे राज्यपाल एसके सिंह का 1 दिसंबर 2009 को बीमारी के कारण निधन हो गया। एसके सिंह के निधन के बाद प्रभा राव राज्यपाल बनकर आईं, सिंह के निधन के पांच महीने बाद ही 26 अप्रैल 2010 को प्रभा राव का हार्ट अटैक से निधन हो गया।प्रभा राह के निधन के बाद उनकी जगह मारग्रेट आल्वा राज्यपाल बनकर आईं, आल्वा ने सकुशल अपना कार्यकाल पूरा किया, लेकिन राजभवन आते समय मारग्रेट आल्वा के भाई गिर गए और सिर में चोट लगने से कुछ दिन बाद ही उनका निधन हो गया। आल्वा के भाई के निधन के बाद फिर राजभवन में गड़बड़ होने के अंधविश्वास से जुड़ी चर्चाओं को फिर बल मिल गया। राजभवन से जुड़े इस अंधविश्वास के बीच तथ्य यह भी है कि राजस्थान की राज्यपाल रहते हुए ही प्रतिभा पाटिल देश के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति के लिए चुनी गई थीं, लेकिन अंधविश्वास की जड़े इतनी गहरी हैं कि बड़े-बड़े इसकी चपेट में हैं।
-13 मई 1998 को राज्यपाल दरबारा सिंह का निधन हुआ
22 सितंबर 2003 को राज्यपाल निर्मल चंद जैन का निधन
1 दिसंबर 2009 को राज्यपाल एसके सिंह का निधन
26 अप्रैल 2010 को राज्यपाल प्रभा राव का निधन
राज्यपाल रहते 2013 में मारग्रेट आल्वा के भाई का निधन हुआ
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