सच रिपोर्टर, भोपाल।
बारहवीं कक्षा के करीब 17 हजार छात्र-छात्राओं के प्रवेश पत्र रोकने के बाद माध्यमिक शिक्षा मंडल (माशिमं) अपने ही नियमों में फंसता हुआ नजर आ रहा है। परीक्षा में शामिल करने के लिए माशिमं ने छात्रों से नामांकन एवं परीक्षा शुल्क के रूप में करीब 3 करोड़ रुपए जमा कराए हैं। छात्रों ने स्कूलों के माध्यम से यह शुल्क 1 जुलाई से 12 अगस्त के बीच जमा किया था।
इसके बाद मंडल ने बिना किसी रोक-टोक के परीक्षा फार्म स्वीकृत कर लिया। लेकिन परीक्षा के करीब 15 दिन पहले विद्यार्थियों के प्रवेश-पत्र रोकते हुए इन्हें अपात्र बता दिया। छात्रों का आरोप है कि यदि वे मंडल के नियम के अनुसार पात्र नहीं है तो उनका नामांकन किस आधार पर किया गया।
नामांकन शुल्क के रूप मंडल ने 1200 रुपए प्रति छात्र जमा कराए थे। इसके बाद परीक्षा शुल्क के तौर पर 500-500 रुपए लिए गए। अब माशिमं ने परीक्षा फार्मों की जांच के बाद प्रदेश भर के करीब 17 हजार ऐसे विद्यार्थियों को परीक्षा देने से रोक दिया है, जो ओपन स्कूल की रुक जाना नहीं योजना से दसवीं पास हैं। माशिमं के निर्णय की जानकारी लगते ही विद्यार्थी और अभिभावक तनाव में आ गए हैं। इन सभी विद्यार्थियों ने नियमित परीक्षार्थी के तौर पर फार्म भरा है और ग्यारहवीं की परीक्षा भी माशिमं की मान्यता प्राप्त स्कूलों से ही पास की है। मगर माशिमं ने यह तर्क देते हुए इन्हें परीक्षा से अपात्र कर दिया है कि दसवीं के बाद बारहवीं की परीक्षा के बीच 24 माह का अंतर होना चाहिए। मगर इनमें से कुड छात्रों सितंबर 2016 एवं कुछ ने दिसंबर में दसवीं कक्षा पास की है।
27 को करेंगे विधानसभा का घेराव
विद्यार्थियों का नामांकन कर परीक्षा से वंचित करने से नाराज आशासकीय विद्यालय संघ एवं पालक महासंघ 27 फरवरी को विधानसभा का घेराव करेगा। अशासकीय विद्यालय संघ के अध्यक्ष अजीत सिंह का कहना है कि इन बच्चों ने नियमित छात्रों रूप में स्कूलों में 11 एवं 12वीं कक्षा की फीस जमा की है। माशिमं में नामांकन एवं परीक्षा शुरू जमा किया है। इसके बाद भी परीक्षा में शामिल नहीं करना छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है।
योजना बनाते समय नहीं किया नियमों पर गौर
पालक महासंघ के अध्यक्ष कमल विश्वकर्मा का कहना है कि सरकार छात्र हित में काम करने का दावा करती है, तो वहीं दूसरे ओर छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ा किया जा रहा है। रुक जाना नहीं योजना के नियम भी स्पष्ट नहीं है। योजना बनाते इनके दाखिले और बोर्ड परीक्षा में शामिल करने के लिए नियम पारित किए जाने थे, उसी वक्त मंडल के नियमों में बदला कराया जाना था, लेकिन छात्रों और उनके अभिभावकों को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार ने आनन-फानन में योजना बना दी अब इसके दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं।
योजना से ओपन बोर्ड ने कमाए 56 करोड़
छात्रों के भविष्य को संवारने के लिए बनाई गई रुक जाना नहीं योजना पर भी सवाल खड़े होने लगे हैं। अभिभावकों का आरोप है कि इस योजना के तहत राज्य ओपन बोर्ड में प्रति विषय 6 00 रुपए के हिसाब से परीक्षा फार्म के रूप में पैसे जमा किए जाते हैं। एक छात्र कम से कम दो से तीन विषय की परीक्षा देता है। यह परीक्षा तीन चरण में आयोजित की जाती है और तीनों चरणों में पैसे लिए जाते हैं। पिछले दो वर्षों में इस परीक्षा में 3 लाख 74 हजार 56 8 छात्र परीक्षा में शामिल हुए। इसमें से 99 हजार 26 3 पास हुए। एक अनुमान के मुताबिक पहले चरण में ही ओपन ने छात्रों से फीस के रूप में करीब 56 करोड़ रुपए कमाए है और इसके बाद माध्यमिक शिक्षा मंडल ने करीब 3 करोड़ जमा कराए। फिर ्रभी यदि छात्रों की साल नहीं बचती तो इस योजना का क्या लाभ।
हाईकोर्ट जाने की तैयारी
माशिमं द्वारा रोल नंबर रोकने से विद्यार्थी गहरे सदमे में हैं। गुरुवार एवं शुक्रवार को प्रदेश के अलग-अलग जिलों से आए छात्र एवं उनके अभिभावकों ने माध्यमिक शिक्षा मंडल में ज्ञापन देकर परीक्षा में शामिल करने करने की मांग की। इसके बाद छात्र व उनके अभिभावक ओपन बोर्ड भी पहुंचे। अभिभावकों का कहना है कि यदि उनके बच्चों को परीक्षा में शामिल नहीं किया गया तो वे न्याय के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे।
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यह स्कूलों की गलत है कि वह बिना किसी नियम के छात्रों को बीच सत्र में दाखिला देते हैं। मंडल के नियम अनुसार नियमित छात्रों को 200 दिन की पढ़ाई जरूरी है वहीं 10वीं एवं 12वीं कक्षा के बीच 24 माह का अंतराल होना चाहिए। हमने स्कूलों को फार्म जमा करते समय ही नियमों से अवगत कराया था, लेकिन उन्होंने विद्यार्थियों को इसकी जानकारी नहीं थी। इसके बाद भी मंडल विद्यार्थियों को शुल्क लौटाने को तैयार है।
एसआर मोहंती, अध्यक्ष, माध्यमिक शिक्षा मंडल
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