होली के पहले निमाड़ी पर चढ़ा भगोरिया का रंग

झाबुआ ॥ एजेंसी
झाबुआ और आलीराजपुर में मनाए जाने वाले देश-विदेश में प्रसिद्ध लोक संस्कृति के पर्व भगोरिया की शुक्रवार से शुरुआत हुई। होली के 7 दिन पहले से मनाए जाने वाले इस पर्व में आदिवासी अंचल की संस्कृति की झलक देखने को मिली।
भगोरिया के अंतर्गत इस बार झाबुआ जिले में 36 और अलीराजपुर जिले में 24 स्थानों पर मेले लगेंगे।होली के पहले मनाए जाने वाले इस पर्व के दौरान आदिवासी लोग अपने अलग ही आनंद में होते हैं। मेले में जलेबी और पारंपरिक व्यंजनों की खुशबू, जगह-जगह लगने वाले हाट की दुकानों, झूलों और युवक-युवतियों की टोली ये सब भगोरिया को ख़ास बनाते हैं। भगोरिया की तैयारियां आदिवासी महीनेभर पहले से ही शुरू कर देते हैं।
60 मेलों में बिखरेगा रंग
भगोरिया के दौरान आलीराजपुर और झाबुआ दोनों जिलों में कुल 60 स्थानों पर मेले लगेंगे। यहां औसतन हर मेले में 10 हजार लोग शामिल होते हैं।
ये है भगोरिया का इतिहास
मान्यता है कि भगोरिया की शुरुआत राजा भोज के समय से हुई थी। उस समय दो भील राजाओं कासूमार औऱ बालून ने अपनी राजधानी भगोर में मेले का आयोजन करना शुरू किया। धीरे-धीरे आस-पास के भील राजाओं ने भी इन्हीं का अनुसरण करना शुरू किया, जिससे हाट और मेलों को भगोरिया कहने का चलन बन गया। हालांकि, इस बारे में लोग एकमत नहीं हैं। उधर, भील जनजाति में दहेज का रिवाज़ उल्टा है। यहां लड़की की जगह लड़का दहेज देता है। इस दहेज से बचने के लिए ही भगोरिया परंपरा का जन्म हुआ था।
नाचते-गाते आते हैं लोग
मेले में युवकों की अलग-अलग टोलियां सुबह से ही बांसुरी-ढोल-मांदल बजाते घूमती हैं। वहीं, आदिवासी लड़कियां हाथों में टैटू गुदवाती हैं। आदिवासी नशे के लिए ताड़ी पीते हैं। पहले मेले में आदिवासी पारंपरिक परिधानों में ही शामिल होते थे, लेकिन अब युवक मॉडर्न कपड़े भी पहनते हैं। मेले में गुजरात और राजस्थान के ग्रामीण भी पहुंचते हैं।


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