कानपुर ॥ एजेंसी
होली आई…मगर इस बार जरा बचके। मिलावटी रंग और गुलाल कहीं आपकी त्वचा को हलाल न कर दे। यूपी के कानपुर शहर में न्यू आजाद नगर, बिधनू और बिनगवां, नौबस्ता के रंग के कारखानों में सस्ते के चक्कर में महीन बालू, डस्ट (पत्थर का पाउडर) और पुरानी ईंटों के चूरे से रंग और गुलाल तैयार किया जा रहा है। रंगने के लिए केमिकल, लेड की मिलावट की जा रही है। इन रंगों के इस्तेमाल से त्वचा और पेट संबंधी बीमारियां हो सकती हैं।
नाम न बताने की शर्त पर एक कारोबारी ने बताया कि बाजार में सस्ते रंगों की मांग ज्यादा है। आरारोट से तैयार होने वाले असली रंग-गुलाल की लागत अधिक होने के साथ ही मुनाफा कम होता है। इसलिए बालू वाले रंग-गुलाल का धंधा चल रहा है। एक रंग कारोबारी ने बताया कि एक किलो मिलावटी गुलाल में 400 ग्राम रेत, 400 ग्राम डस्ट (पत्थर का पाउडर) 200 ग्राम आरारोट और कलर के लिए केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है। रेत में डस्ट मिलाने से वह चिकना हो जाता है। इससे शुद्ध और मिलावटी में फर्क करना मुश्किल जाता है। ऐसा ही रंगों में किया जाता है। यहां बालू बोरियों में पैक आती है। शुद्ध गुलाल आरारोट और मैदा से तैयार होता हैं, लेकिन इसकी लागत अधिक होने से कुछ ब्रांडेड कंपनियां ही इसे बनाती हैं। इसमें मिलाए जाने वाला कलर भी ब्रांडेड होता है, जिससे इसकी कीमत 150-200 रुपये किलो तक होती है। यह गुलाल त्वचा को नुकसान नहीं पहुंचाता है। ऐसा ही रंगों में भी है। बाजार में 50 रुपये किलो से लेकर 600 रुपये किलो तक के मिलावटी रंग उपलब्ध हैं। असली रंग 1500 रुपये किलो से शुरू हैं। इसी तरह मिलावटी गुलाल ढाई रुपये किलो से लेकर 55 रुपये किग्रा तक बाजार में उपलब्ध है। असली गुलाल 150 रुपये प्रति किलोग्राम से शुरू है। न्यू आजाद नगर, बिधनू और बिनगवां, नौबस्ता, चकेरी के रंग के कारखानों में तैयार मिलावटी रंग-गुलाल कानपुर के अलावा कन्नौज, फतेहपुर, औरैया, उरई, बांदा आदि जिलों में भेजा जाता है। रोज दो ट्रक माल तैयार करके भेजा जाता है। लाल, हरा, पीला, गुलाबी रंग ज्यादा बनाए जाते हैं।
इन इलाकों में बन रहे मिलावटी रंग और गुलाल का धंधा होली तक 50 लाख का हो जाएगा। होली तक करीब 200 ट्रक माल सप्लाई करने का अंदेशा है। यहां ये रंग तैयार होने के बाद दूसरे शहरों में भी भेजा जाता है। कारोबारी ने बताया कि मिलावटी और शुद्ध रंगों की पकड़ उनके वजन से हो सकती है। रेत के कारण मिलावटी गुलाल का वजन अधिक होता है और उसमें नमी भी रहती है। मैदा और आरारोट से तैयार गुलाब का वजन कम और सूखा होता है, जो आसानी से फूंक मारने पर भी उड़ जाता है। ऐसा ही रंगों में भी होता है। काला रंग लेड ऑक्साइड है। हरा रंग में कॉपर सल्फेट मिला है। गहरा गुलाबी रंग क्रोमियम आयोडाइड का मिश्रण है। सिल्वर रंग एल्यूमीनियम ब्रोमाइड से बनाया गया है। लाल रंग मरकरी सल्फाइड की देन है।
होली खेलने से पहले चेहरे, शरीर और बालों में ऑयली क्रीम या तेल लगा लें। इससे मिलावटी रंगों का असर कम हो जाता है। अगर, इसके बावजूद जलन महसूस हो तो पानी से धोएं। रगड़कर रंग छुड़ाने की कोशिश न करें। चर्म रोग विशेषज्ञ डॉ. सुशील चंद्रा के मुताबिक मिलावटी रंग लगाने से त्वचा पर खुजली, लाल चकत्ते, दाने हो सकते हैं। रंग आंखों में चला जाए तो जलन और घाव हो सकता है। फिजीशियन डॉ. विशाल गुप्ता रोग के मुताबिक रंग लगे हाथों से कुछ भी खाने से यह पेट में जाकर आंतों में इन्फेक्शन और पेट में जलन कर सकता है, अस्थायी अस्थमा भी हो सकता है।ड्ड
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